Anpadh jaat Padha Barabar अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा … यह कहावत आपने अपने गावं के बड़े बुजर्गो से कई बार सुनी होगी, पर क्या आप ने कभी सोचा है यह कहावत किसने कही थी और किस घटना पर कही थी तो आइए इसको सुरु से सुरु करते है Anpadh jaat Padha Barabar यह घटना है कोई 1270 के आसपास की है, जब दिल्ली में बादशाह बलबन का राज था उसके दरबार में एक अमीर दरबारी भी था जिसके तीन बेटे थे, कहा जाता है की उस दरबारी के पास 19 घोड़े भी थे जब उसका अंत समय आया तो उसने अपने बेटों के नाम एक वसीयत लिखी थी वसीयत क्या थी अमीर दरबारी के पास वसीयत में जो 19 घोड़े थे, उसकी उसने वसीयत इस प्रकार लिखी थी अब तीनों बेटे अपने पिताजी की तेहरवी करने के बाद इन घोड़ो का बंटवारा करने के लिए बैठे, पर यहाँ एक समस्या आ गई… समस्या ये की 19 घोड़ो का ना तो आधा किया जा सकता और ना ही चोथाई व पांचवा हिसा किया जा सकता जब तीनो भाई इस बटवारे को नही कर पाए तो वो बादशाह के दरबार में चले गये और बादशाह से इस बटवारे को सही सही करवाने के लिए गुजारिस की… बादशाह बलबन ने सभी दरबारियों को एक जगह किया और दरबार में यह फैसला करने लगे लेकिन यहाँ भी वही हुआ की कोई भी दरबारी संतोषजनक फैसला नही कर पाया.. उसी समय बादशाह के सबसे खास और प्रसिद्ध कवि  ‘आमिर खुशरो’ जो बलबन के दरबारी कवि भी थे वो भी इस दरबार में थे उसने जाटो की पंचायतो के बारे में काफी सूना था अमिर खुशरो ने बादशाह से कहा की मैं जाटो के इलाको में खूब घुमा हूँ और उनकी खूब पंचायती फैसले भी सुने है अगर इस समस्या का कोई हल कर सकता है तो वो है सर्वखाप पंचायत का कोई  ‘जाट मुखिया’ लेकिन इसके विरुद सभी दरबारियों ने इंकार कर दिया की यह फेसला तो हो ही नही सकता है चुकीं, बादशाह बलबन के पास कोई दूसरा ऑप्शन नहीं था, लिहाजा खुशरो की बात को स्वीकार करते हुए बादशाह ने किसी जाट मुखिया को बुलाने का फेसला किया.. और उसी समय  सर्वखाप पंचायत के किसी खास आदमी को चिट्टी देकर गांव ‘सौरम’ जिला ‘मुज्फ्फरनगर’ भेजा गया (ध्यान रहे– इस गांव में सर्वखाप पंचायत का मुख्यालय आज भी मोजूद है) चिट्टी पाकर पंचायत के प्रधानपंच चौधरी रामसहाय सूबेदार को दिल्ली भेजा गया… चौधरी साहब अपने घोड़े पर सवार होकर बादशाह के दरबार पहुंचे, अब बादशाह ने सभी दरबारियों को एक खुले मैदान में बैठाया और वहीं पर 19 घोड़ो को लाइन से बंधवा दिया गया चौधरी साहब ने अपना परिचय देते हुए शुरू किया ‘शायद इतना तो आपको पता होगा की हमारे यहाँ राजा और प्रजा का सम्बंध बाप-बेटे जैसा होता है और प्रजा की संपति पर राजा का भी हक होता है इसलिए में जो घोड़ा लाया हु, उसपर राजा जी का भी हक है  इसलिए में अपना घोड़ा राजा जी को भेंट करता हु… और मेरे घोड़े को भी इन 19 घोड़ो में मिलाने की इजाजत चाहता हूँ इसके बाद बंटवारे का फेसला सुनाऊंगा बादशाह बलबन ने इसकी इजाजत देते हुए फैसला सुनने की इजाजत दे दी, चौधरी साहब ने अपने घोड़े को उन 19 घोड़ो की लाइन में सबसे अंत में बांध दिया … जिससे घोड़ो की गिनती अब 19 और 1 यानि 20 हो गई अब चौधरी साहब ने बटवारा इस प्रकार किया … अब जब तीनों बेटो का हिसाब बराबर हो गया तो अंत में एक घोड़ा बच गया… जो वैसे भी चौधरी साहब का था, बंटवारा पूरा करके चौधरी साहब ने कहा – मेरा घोड़ा तो बच गया है बादशाह आपकी इजाजत हो तो में मेरा घोड़ा वापस ले लू और बादशाह ने हाँ कहते हुए इस फैसले को स्वीकार कर लिया… इस फैसले से प्रभावित होकर बादशाह बलबन और वहाँ बैठे सारे दरबारियों ने चौधरी साहब की बहुत तारीफ की थी, कहते है जब चौधरी साहब अपने घोड़े पर बैठकर जाने लगे… तो वहा मोजूद ग़ाव के लोग नाचने लग गए थे … इसी वक्त यानि जब चौधरी साहब अपने गांव की जाने लगे तो ‘अमीर खुसरो’ ने जोर से कहा- “अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा ” और वहां मोजूद सारी भीड़ इस पंक्ति को दोहराने लगी… तब यह कहावत राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उतर प्रदेश तथा दूर दूर तक फेल गई… जो आज तक चली आ रही है Anpadh Jaat FAQ यह भी जाने 👇 👉 रहस्यमयी गांव जो एक रात में गायब हो गया 👉 हावड़ा ब्रिज का अनदेखा रहस्य Anpadh jaat Padha Barabar या अनपढ़ जाट पढ़ा बराबर, पढ़ा जाट खुदा बराबर या इससे सम्बंधित जानकारी के लिए यह आर्टिकल हेल्पफुल साबित हुआ है आपके सुझाव और कमेंट सादर आमंत्रित है इसी प्रकार की जानकारीयो को वीडियो के रूप में जानने के लिए हमारे युटुब चैनल Click Here का विजिट करें, Anpadh jaat Padha Barabar  शुक्रिया