सिराजुद्दौला ने जगत सेठ को अपने दरबार बुलाया और युद्ध खर्च के लिए 3करोड़ रुपए की मांग की 1750 में यह रकम काफी बड़ी थी जब जगत सेठ ने अपना जवाब ना में दिया तो नवाब ने उन्हें एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया, कहते है इसी थपड़ नें भारत को अंग्रेजो का गुलाम बना दिया था, तो लीजिए कहानी को शुरू से शुरू करते हैं Jagat Seth Jagat Seth ब्रिटिश राज आने से पहले भारत आर्थिक रूप से काफी मजबूत था, भारत को यु ही सोने की चिड़िया नहीं कहा जाता था इसके पीछे कई कारण थेराजे रजवाड़ों से लेकर मुगलों तक के खजाने भरे हुए थे तो व्यापारीयों से लेकर आम जनता तक सभी धनी थेअनगिनत लोगों के पास बेसुमार धन दौलत थी, लेकिन उस वक्त एक परिवार ऐसा भी था जिसके पास उस समय करोडो में दोलत थी, इसलिए इस परिवार के सेठ फतेहचंद को 1723 में मुहम्मदसाह ने जगत सेठ की उपादी दि थी बात है 17वी शताब्दी की, राजस्थान के नागौर के एक मारवाड़ी जैन परिवार हीरानंद साहू के घर एक बेटा होता है नाम रखा गया माणिकचंद,…इधर माणिकचंद धीरे धीरे बड़ा होता है तो उधर हीरानंद साहू फैमिली व्यापार के अलावा, कुछ नए व्यापार और बेहतर संभावनाओं की खोज में बिहार के पटना पहुंच जाता है,पटना में हीरानंद साहू ने साल्टपिटर यानि पोटेशियम नाइट्रेट का कारोबार शुरू किया जिसका इस्तेमाल जंग अवरोधक गन पाउडर और पटाखों में किया जाता था. जैसे-जैसे हीरानंद साहू को इस व्यापार में प्रॉफिट हुआ तो हीरानंद ने पैसों से पैसा बनाने की अपनी खानदानी कला को आगे बढ़ाया और एक नया बिजनेस शुरू किया, लोन देना या उसे समय के लिए कहे तो पैसा ब्याज पर देना कहते हैं हीरानंद साहू का भाग्य इतना तेज था, कि मानो पांचो उंगलियां घी में और सर कड़ाई में, यह बैंकर का काम भी हीरानंद साहू का कुछ ही दिनों में इतना फला-फुला की हीरानंद कुछ ही दिनों में मुगलों से लेकर ईस्ट इंडिया कंपनी तक के लोगों को लोन के रूप में पैसा देने लगे, हीरानंद साहू नें ईस्ट इंडिया कंपनी को काफी पैसे उधार दिए और उनके साथ कारोबारी संबंध भी बनाए अब अगली पीढ़ी यानि माणिक चंद ने अपने पिता का बिजनेस संभाला और चारों ओर फैलाना शुरू किया और नए क्षेत्रों में कदम रखा इसमें पैसे ब्याज पर देना भी एक बिजनेस था जल्दी माणिक चंद की दोस्ती बंगाल के दीवान मुर्शिद कुली खान के साथ हो गईआगे चलकर वह बंगाल सल्तनत के पैसे और टैक्स को संभालने लगे उनका पूरा परिवार बंगाल के मुर्शिदाबाद में बस गयामाणिक चंद के बाद परिवार की बागडोर फतेहचंद के हाथों में आ गई जिनके समय में यह परिवार अपनी बुलंदियों पर पहुंचा…ढाका, पटना, दिल्ली सहित बंगाल और उत्तरी भारत के महत्त्वपूर्ण शहरों में इस घराने की शाखाएं थी इसका मुख्य मुख्यालय मुर्शिदाबाद में ही था जगत सेठ परिवार का ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ लोन की अदायगी, सर्राफा की खरीद – बिक्री आदि का लेनदेन थाएक ब्रिटिश लेखक के अनुसार यह हिंदू व्यापारी परिवार मुगल साम्राज्य में सबसे धनी था और इसके मुखिया का बंगाल सरकार पर जबरदस्त प्रभाव था इस घराने की तुलना बैंक ऑफ इंग्लैंड से की गई थी, कुछ इतिहासकारों का तो यह भी मानना है उस समय इंग्लैंड की कुल GDP से ज्यादा धन जगत सेठ घराने के पास था इस परिवार ने बंगाल सरकार के लिए कई ऐसे कार्य किए जो बैंक ऑफ इंग्लैंड ने 18वीं शताब्दी में ब्रिटिश सरकार के लिए किए थे, इस परिवार की आय के कई स्रोत थे यह सरकारी राजस्व यानी कि टैक्स वसूलते थे और नवाब के कोषाध्यक्ष के रूप में काम करते थे उस समय जमीदार लोग इस घराने के माध्यम से अपने राजस्व का भुगतान करते थे और नवाब फिर इसके माध्यम से दिल्ली को वार्षिक राजस्व का भुगतान करते थे इसके अलावा यह सिक्कों के उत्पादन या ढलाई का काम करते थे कितने अमीर थे जगत सेठ फतेहचंद अपने समय में 2000 सैनिकों की सेना रखते थे और वह भी अपने खर्चों पर बंगाल बिहार और उड़ीसा में आने वाला सारा राजस्व इनके जरिए ही आता था उनके पास कितना सोना चांदी और पन्ना था इसका अंदाजा लगाना मुश्किल था उस वक्त यह कहावत चलन में थी कि जगत सेठ अगर चाहे तो सोने और चांदी की दीवार बनाकर गंगा नदी को रोक सकते हैंसमय बिताता गया और अब इस जगत सेठ परिवार की बागडोर संभाली मेहताब राय ने इस समय बंगाल में अलीवर्दी खान के समय में सेठ मेहताब राय और उनके चचेरे भाई स्वरूप चंद का बहुत प्रभाव था, सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा थालेकिन कहते हैं ना कि समय आता है तो समय जाता भी है बंगाल में अलीवर्दी खान के उत्तराधिकारी सिराजुद्दौला बने, सिराजुद्दौला ने जगत सेठ को अपने दरबार बुलाया और युद्ध में खर्च के लिए 3करोड़ रुपए की मांग की 1750 में यह रकम काफी बड़ी थी जब जगत सेठ ने अपना जवाब ना में दिया तो नवाब ने उन्हें एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया, कहते है इसी थपड़ नें भारत को अंग्रेजो का गुलाम बना दिया था कैसे… सिराजुद्दौला से दोस्ती टूटने के बाद जगतसेठ को अपने धन दौलत की सुरक्षा की चिंता होने लगी, बदले में इन्होंनें, साजिश रची इनका मकसद था सिराजुद्दौला को नवाब की गद्दी से हटाना इसके लिए जगत सेठ ने अंग्रेजो को उकसाया और 1757 के प्लासी के युद्ध के दौरान अंग्रेजों की खूब फंडिंग की… परिणाम- प्लासी की लड़ाई में 3000 अंग्रेज सैनिकों की टुकड़ी ने नवाब सिराजुद्दौला के 50000 सैनिकों की सेना को हरा दिया था प्लासी की लड़ाई में सिराजुद्दौला के मारे जाने के बाद मीर जाफर नवाब बना और जगत सेठ घराने का दबदबा वापस कायम हुआ… लेकिन कुछ समय बाद ही मीर कासिम, मीर जाफर के उत्तराधिकारी बने… जो उन्हें राजद्रोही मानता था, 1764 में बक्सर की लड़ाई से कुछ समय पहले जगत सेठ मेहताब राय और उनके चचेरे भाई स्वरूप चंद को मीर कासिम के आदेश पर राजद्रोह के आरोप में पकड़ लिया गया और गोली मार दी गईकहा जाता है कि जब उन्हें गोली मारी गई तब मेहताब राय दुनिया के सबसे अमीर आदमी थे मेहताब राय और
कभी खाली मत बैठो / सफलता के 10 नियम / Never sit idle
Never sit idle…मध्यवर्गीय परिवार का एक बच्चा, 12वी पास करने के बाद… अब आजाद पंछी बन चुका था, हाथ में मोबाइल, पैरों के नीचे बाइक, घर पर कोई सवाल नहीं, दोस्तों की कमी नहीं…सफर शुरू होता है… पढ़ाई कम मौज मस्ती ज्यादा, घर पर कोई काम नहीं, दोस्तों के साथ आवारा गिरदि ज्यादासमय कब बिता पता ही नहीं चला और कॉलेज के 3 साल कंप्लीट हो जाते हैंअब 3 साल बाद में जो मोटा मोटी कमाया था उसकी लिस्ट इस प्रकार थीनशे के आदि बेशुमार खर्चेऑनलाइन गेमिंग की लतदोस्तों से उधार की एक लंबी लिस्टलेकिन इन सब के अलावा एक और बड़ी समस्या थी जो दोस्त शुरू शुरू में साथ थे वो अब उसका साथ छोड़ चुके थे और घर परिवार की जिम्मेदारी लेने का वक्त भी आ चुका था… But अब करे क्या जिंदगी सवारने का सही समय तो खराब कर चूका था अब मोहित बिल्कुल टूट चुका था (मोहित एक काल्पनिक नाम है) मोहित एक दिन सुबह-सुबह मानसिक तनाव, आंखें लाल और और कंधों पर परिवार की ढेर सारी जिम्मेदारी लिए हुए पैदल ही गांव से बाहर की ओर निकल पड़ता हैमोहित कुछ दूर चला ही था कि उसको एक पेड़ के नीचे सज्जन पुरुष योग करते हुए दिखाई देते हैं,मोहित ने देखा देखा कि उस सज्जन पुरुष का चेहरा तेजस्वी था और उनके व्यक्तित्व में एक विशेष आभा थी ऐसी आभा की मोहित उन्हें देखता ही रहा मोहित को अपनी ओर देखते हुए देखकर सज्जन पुरुष मुस्कुराए और प्यार से कहा क्या बात है बेटे, काफी परेशानी में लग रहे होमोहित बोला, क्या बताऊ खाली बैठा रहता हूं और मुझे समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूं मेरे पास ना तो कोई सपना है और ना ही किसी चीज के लिए प्रेरणा उस सज्जन पुरुष ने कुछ देर तक मोहित को ध्यान से देखा और फिर गहरी आवाज में बोले बेटे खाली बैठना सबसे बड़ा अभिशाप हैतुम्हारा मन और शरीर दोनों प्रकृति की दी हुई अमूल्य देन है यदि तुम इन्हें व्यर्थ में बर्बाद करोगे तो यह जीवन भी बर्बाद हो जाएगा मैं तुम्हें सफलता के 10 नियम बताता हूं यदि तुम इन्हें अपनाओगे तो तुम्हारा जीवन बदल सकता है मोहित ने सिर झुकाया और उस सज्जन पुरुष की बातों को ध्यान से सुनने के लिए तैयार हो गयावो दश बाते जिन्हें अगर जीवन में लागु किया जाए तो किसी भी मनुष्य का भाग्य बदल सकता है नंबर एकसपनों को लक्ष्य में बदलो, हर व्यक्ति के मन में कोई ना कोई सपना होता है परंतु केवल सपने देखना ही पर्याप्त नहीं है जो अपने सपनों को लक्ष्य में बदलते हैं वही सफलता प्राप्त करते हैं सबसे पहले यह तय करो कि तुम्हें अपने जीवन में क्या पाना है यदि तुम यह नहीं जानोगे तो तुम्हारा जीवन बिना दिशा के एक भटके हुए जहाज की तरह होगा नंबर दोवक्त है एक बहता दरिया, इसे थाम लो,समय का सही उपयोग करो, सपनों को नाम दो।” समय का सही उपयोग करो, संसार में समय सबसे मूल्यवान चीज है एक बार समय को बर्बाद कर देते है, तो यह कभी लौट कर वापस नहीं आता जो व्यक्ति समय की कदर नहीं करता उसे जीवन में सफलता नहीं मिलती हर क्षण को एक अवसर की तरह देखो और उसका सदुपयोग करो नंबर तीनध्यान और एकाग्रता को अपनाओ, ध्यान वह साधन है जो इंशान के विचलित मन को एकाग्र करता है यदि तुम प्रतिदिन ध्यान करोगे तो तुम्हारा मन शांत होगा और तुम्हारी एकाग्रता बढ़ेगी, इससे काम में मन लगेगा वही आपको नये आइडियाज भी आएंगे नंबर चारछोटी-छोटी आदतें विकसित करो, हर बड़ा परिवर्तन छोटी-छोटी आदतों से शुरू होता है तुम हर दिन एक नई सकारात्मक आदत अपनाने की कोशिश करो जैसे सुबह जल्दी उठना, पढ़ाई करना या व्यायाम करना, लगातार छोटे-छोटे सुधार तुम्हें महान उपलब्धियों तक ले जाएंगे नंबर पांचस्वास्थ्य का ध्यान रखो, कहते है ना पहला सुख नीरोगी काया, वैसे भी एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता हैयदि आप अपने शरीर का ध्यान नहीं रखोगे तो तुम्हें सफलता प्राप्त करने में कठिनाई होगी तुम व्यायाम करो पौष्टिक आहार लो और अपनी दिनचर्या को संतुलन बनाए रखो स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी पूंजी है नंबर छसकारात्मक सोच रखो, जीवन में सकारात्मक सोच अपनाओगें तो तुम्हें हर स्थिति में अच्छा देखने की आदत हो जाएगी तुम अपने विचारों को नियंत्रित कर सकोगे क्योंकि वही तुम्हारे कार्यों को प्रभावित करते हैं नकारात्मक सोच सिर्फ बाधाएं खड़ी करती है नंबर सातआत्म अनुशासन का पालन करो, आत्म अनुशासन के बिना इंसान किसी भी लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते, जरुरी है की खुद को अनुशासित करना सीखो यह जानो कि कब क्या करना है और कब क्या नहीं करना, अपना समय और ऊर्जा का सही दिशा में उपयोग करो नंबर आठविफलताओं से सीखो, जीवन में असफलता ही सबसे बड़ा शिक्षक है असफलताओं को अपने अनुभव की तरह देखो और उनसे सीखो की पहले क्या कमिया रही थी, आगे उसे दुरस्त करो और प्रयास जारी रखो, सफलता जरूर एक दिन आपके द्वार खड़ी होंगी नंबर नौहर दिन कुछ नया सीखो, ज्ञान अर्जित करने से इंसान अपने जीवन में नई ऊंचाइयां पाता है इसलिए हर दिन कुछ नया सीखने की आदत डालो. चाहे वह किताबें पढ़कर हो, किसी विशेषज्ञ से सलाह लेकर या अपने अनुभवों से सीखो But यह सीखने की प्रक्रिया कभी ख़त्म नहीं होनी चाहिए नंबर 10कुछ करने की ठानों, कभी हार मत मानोरुको नहीं, बस चलते जाओरुको नहीं बस चलते जाओउम्मीद करती हूं आपको यह कहानी पसंद आई होगी, आगे आप किस विषय पर कहानी चाहते हैं कमेंट करके बताइए, और हां इस वीडियो को शेयर करना और मेरे पेज को फॉलो करना बिल्कुल भी ना भूले मिलते हैं अगली कहानी में तब तक राम-राम Never sit idle कुछ करने की ठानों, कभी हार मत मानोरुको नहीं, बस चलते जाओरुको नहीं बस चलते जाओजब इंसान सही रास्ते पर चल रहा होता है और अपनी मंजिल के करीब होता है, तो वह बहुत खुशी महसूस करता है,लेकिन जरूरी नहीं कि वह मंजिल तक पहुंची ही जाएगा क्योंकि मंजिल तक पहुंचने के लिए छोटे रास्तों में भी बड़ी दूरी तय करनी पड़ती हैऔर कभी-कभी यह छोटे रास्ते भी बंद हो जाते हैं, और फिर हम अपनी किस्मत
चौधरी चरणसिंह की अनसुनी कहानी / Story of Chaudhary Charan Singh
थाने के मुंशी ने सोचा ये किसान पागलो की तरह हरकते क्यों कर रहा है लेकिन जब मुंशी ने कागज पर लगी मोहर को नजदीकी से देखा तो मुंशी ही नहीं पूरा थाना सन रह गया, उनके साथ वो हो चुका था जो शायद उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा… Story of Chaudhary Charan Singh अगस्त 1979, उत्तर प्रदेश के इटावा जिले का एक पुलिस थाना, शाम के समय की बात है एक धोती कुर्ता पहने किसान आता है और संत्री से पूछता है कि भैया थानेदार साहब से बात करनी है, जैसे ही किसान ने पूछा संत्री ने कहा कि थानेदार साहब तो राउंड पर गए हुए हैं बताइए क्या बात है किसान कहता हैं कि साहब मेरी जेब काट ली गई है और मैं बहुत परेशान हूं जैसे ही संत्री ने यह बात सुनी उसने कहा कि ठीक है थोड़ी देर इंतजार कर लो साहब आने ही वाले है किसान इंतजार करने लगा तभी थाने के दरोगा की नजर उस किसान पर पड़ जाती है और किसान को पास बुला लेते है अब किसान के सामने दरोगा जी और इर्दगिर्द और भी कई सिपाही, हेड कांस्टेबल वगैरह खड़े हुए थे किसान से पूछा गया कि बाबा क्या बात है कैसे परेशान हो रहे हो, अब वो कहते हैं कि साहब मैं मेरठ का रहने वाला हूं और यहां बैल खरीदने के लिए आया था, मुझे किसी ने बताया कि इस इलाके में बैल बहुत अच्छे मिलते हैं इसलिए बैल खरीदने आया था लेकिन मेरी किसी ने जेब काट ली जैसे ही दरोगा ने यह बात सुनी दरोगा ने उसकों डांटना शुरू कर दिया साथ ही पास खड़े सिपाहियों ने भी मजाक का पात्र बनाया, किसान को डराया गया धमकाया गया… अब वो किसान बिल्कुल शांत हो जाता है कहता है कि साहब रिपोर्ट लिख लीजिए मैं अपने घर जाकर क्या जवाब दूंगा मेरे घर वालों को जब पता चलेगा कि मेरी जेब कट गई है तो कम से कम यहां से कुछ कागज लेकर जाऊंगा तो घर वाले शांत हो जाएंगे किसान को डांटा जाता है फटकारा जाता है तो किसान वहां से हट जाता है हटने के बाद किसान दीवार के सहारे बैठ जाता है किसान इंतजार कर रहा था कि जब थानेदार आएगा तो पूरी कहानी बया करेगा और उसके बाद उसकी रिपोर्ट लिख ली जाएगी तो कम से कम तसल्ली से वह घर चला जाएगा… कुछ समय बीतता है उसके बाद थानेदार भी वापस आ जाते है जैसे ही थानेदार साहब आते हैं और उनकी नजर उस किसान पर पड़ती है जिसने मैले कुचले कपड़े पहन थे थानेदार पूछते है की यह आदमी यहां क्या कर रहा है तो वहा खड़े सिपाही बताते है की साहब ये किसान है जो मेरठ का रहने वाला बता रहा है कह रहा है की मेरी जेब कट गई है खामखा परेशान कर रखा है तो थानेदार ने उसको अपने कड़क लहझे में समझाया, डांटा फटकारा और फटकारने के बाद घर जाने को बोल दिया किसान जैसे ही वहा से जाने लगा तभी पीछे से एक सिपाही किसान के पास पहुंचता है कि बाबा मैं तुम्हें इतनी देर से देख रहा हूं तुम परेशान हो एक तो तुम इतनी दूर से आये हो ऊपर से आप के साथ इतना बुरा हुआ, इसलिए मुझे आपको देखकर थोड़ा तरस आ रहा है अगर आपको कोई ऐतराज ना हो तो. क्यों ना मैं आपकी रिपोर्ट लिखवाने में मदद कर दूं. किसान ने कहा कि अगर भैया ऐसा हो जाए तो मेरे लिए अच्छा होगा किसान की जेब में पैसे थोडे ज्यादा थे इसलिए सिपाही ने कहा कि अगर तुम्हें रिपोर्ट लिखनी है तो 100₹ लगेंगे किसान ने कहा मेरी तो पहले से ही जेब कटी पड़ी है मैं इतने पैसे नहीं दे पाऊंगा… रिपोर्ट लिखनी है तो लिखो नहीं तो मत लिखो… कुल मिलाकर दोनों के बीच बातचीत का संवाद शुरू हो जाता है और बात 35रु पर आकर थम जाती है सिपाही कहता है कि आप 35रु खर्च कर दीजिएगा और मैं आपकी रिपोर्ट लिखवा दूंगा अब सिपाही थानेदार के पास जाकर कहता है कि साहब मैंने उस किसान को मना लिया है वह 35 ₹ की रिश्वत दे रहा है और आप उसकी अगर रिपोर्ट लिख लोगे तो उसको कोई दिक्कत या कोई ऐतराज भी नहीं है थानेदार कहता है ठीक है तुमने अच्छा काम किया है उस किसान को बुलाओ और मुंशी के पास लेकर जाओ मुंशी उसकी रिपोर्ट लिख लेगा आखिरकार किसान बोलता गया मुंशी लिखता गया जब रिपोर्ट पूरी लिख ली जाती है उसके बाद किसान को एक इंक पैड दि जाती है और अंगूठे का निशान लगाने को कहा जाता है अब स्थिति एकदम बदल जाती है किसान कहता है कि साब मुझे पेन दो मैं हस्ताक्षर करूंगा, मुंशी को अजीब तो लगा लेकिन माजरा समझ नहीं आया और उठाकर पेन दे दिया… किसान ने पेन हाथ में लिया और हस्ताक्षर कर दिया, किसान यही नहीं रुका और हस्ताक्षर करने के तुरंत बाद ही अपनी जेब में हाथ डाला और एक मोहर निकाली और अपनी मोहर का ठप्पा भी लगा दिया पहले तो मुंशी ने सोचा ये किसान पागलो की तरह हरकते क्यों कर रहा है लेकिन जब मुंशी ने कागज पर लगी मोहर को नजदीकी से देखा तो मुंशी ही नहीं पूरा थाना सन रह गया, उनके साथ वो हो चुका था जो शायद उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा… वो बार-बार यही सोच रहे थे की यह कैसे सच हो सकता है क्योंकि मोहर पर लिखा था … प्रधानमंत्री भारत सरकार नई दिल्ली अब यह बात थाने तक ही सीमित नहीं थी बल्कि थाने से बाहर जिले में और जिले से बाहर पूरे देश प्रदेश में फैल चुकी थी, कहते हैं जब यह कहानी अखबारों में छपी तो इसका इतना असर पड़ा कि भ्रष्टाचार के ऐसे मामले काफी कम होने लग गए थे अब अगर आप इस कहानी से इतना कुछ जान गए हैं तो शायद यह जानने की जिज्ञासा भी होगी कि आखिर ऐसे प्रधानमंत्री थे कौन तो आपको बता दे कि यह प्रधानमंत्री थे चौधरी चरणसिंह Story of Chaudhary Charan Singh वो देश के महान प्रधानमंत्री जिनका प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह कार्यकाल
जाट ने बाज को कैसे उड़ाया / The Eagle and the Farmer
The Eagle and the Farmer एक राजा को उपहार में किसी ने बाज के दो बच्चे भेंट किये, वे बड़ी ही अच्छी नस्ल के थे और राजा ने इससे पहले इतने शानदार बाज कभी नहीं देखे थे, राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक अनुभवी आदमी को नियुक्त कर दिया। कुछ समय पश्चात राजा ने देखा कि दोनों बाज काफी बड़े हो चुके थे, और अब पहले से भी शानदार लग रहे हैं। राजा ने बाजों की देखभाल कर रहे आदमी से कहा, मैं इनकी उड़ान देखना चाहता हूँ, तुम इन्हें उड़ने का इशारा करो, उस आदमी ने ऐसा ही किया, इशारा मिलते ही दोनों बाज उड़ान भरने लगे, पर जहाँ एक बाज आसमान की ऊंचाइयों को छू रहा था। वहीं दूसरा, कुछ ऊपर गया और वापस आकर उसी डाल पर बैठ गया जिससे वो उड़ा था। ये देख राजा को कुछ अजीब लगा, राजा ने सवाल किया… क्या बात है जहाँ एक बाज इतनी अच्छी उड़ान भर रहा है वहीं ये दूसरा बाज उड़ना ही नहीं चाह रहा.? सेवक बोला, जी हुजूर, इस बाज के साथ शुरू से यही समस्या है, वो थोडा उड़ता है और वापस आकर यही बैठ जाता है अगले दिन पूरे राज्य में ऐलान करा दिया गया, कि जो व्यक्ति इस बाज को ऊँचा उड़ाने में कामयाब होगा उसे ढेरों इनाम दिया जाएगा, फिर क्या था, एक से एक विद्वान् आये और बाज को उड़ाने का प्रयास करने लगे, पर हफ़्तों बीत जाने के बाद भी बाज का वही हाल था, वो थोडा सा उड़ता और वापस उसी डाल पर आकर बैठ जाता । फिर एक दिन कुछ अनोखा हुआ, राजा ने देखा कि उसके दोनों बाज आसमान में उड़ रहे हैं, उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ और उन्होंने तुरंत उस व्यक्ति का पता लगाने को कहा जिसने ये कारनामा कर दिखाया था। वह व्यक्ति एक किसान था, अगले दिन वह दरबार में हाजिर हुआ, उसे काफी इनाम दिया गया और बाद राजा ने कहा, मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ, बस तुम इतना बताओ कि जो काम बड़े-बड़े विद्वान् नहीं कर पाये वो तुमने कैसे कर दिखाया। उस बाज़ को उड़ना कैसे सिखाया.? किसान बोला राजा साहब…! मैं तो एक साधारण सा किसान हूँ, ज्ञान की ज्यादा बातें तो मै जानता नहीं … मैंने तो बस वो डाल काट दी, बाज जिस पर बैठने का वो आदि हो चुका था, और जब वो डाल ही नहीं रही तो वो भी अपने साथी के साथ ऊपर उड़ने लग गया। मतलब, मतलब ये की हम सभी ऊँची उड़ान भरने के लिए ही बने हैं, लेकिन कई बार हम जो कर रहे होते है, उसके इतने आदि हो जाते हैं कि अपनी ऊँची उड़ान भरने की क्षमता को ही भूल जाते हैं, हम बेमतलब की बातो की डाल पर बैठते आए हैं और इन्ही पर बैठे रह जाते The Eagle and the Farmer तो, तो क्या कौन क्या कर रहा है, कैसे कर रहा है इन से दूर रहे और अपने को क्या करना है उसके लगे रहे, यह कहानी आपको कैसी लगी और आगे आप किस विषय पर कहानी चाहते हैं कमेंट करके बताइए और हां इस कहानी को शेयर करना तो बिल्कुल भी ना भूले मिलते अगले आर्टिकल में तब तक राम-राम 👉 रहस्यमयी गांव जो एक रात में गायब हो गया 👉 हावड़ा ब्रिज का अनदेखा रहस्य उम्मीद है उपर्युक्त जानकारी या इससे सम्बंधित जानकारी के लिए यह आर्टिकल हेल्पफुल साबित हुआ है आपके सुझाव और कमेंट सादर आमंत्रित है इसी प्रकार की जानकारीयो को वीडियो के रूप में जानने के लिए हमारे युटुब चैनल Click Here का विजिट करें, शुक्रिया
कम बोलना कैसे सीखे / क्या पत्नी ज्यादा बोलती है How to learn to speak less
learn to speak less एक पति अपनी पत्नी से काफी ज्यादा परेशान था परेशानी यह थी की पत्नी बहुत ज्यादा बोलती हर वक्त इधर-उधर की बातें करती रहती कभी शांत नहीं बैठतीएक दिन गांव में एक महात्मा आए, जो हर बीमारी का इलाज बता रहे थे पति ने सोचा महात्मा की परीक्षा लेते हैं या तो पत्नी का इलाज हो जाएगा या महात्मा जी का पता चल जाएगा कि कितने पानी में हैवह अपनी पत्नी को उनके पास लेकर जाता है और कहता है कि मुनिवर कृपा करके आप इसे समझाइए यह बहुत बोलती है मेरे मना करने के बाद भी इसकी जुबान दिन भर चलती ही रहती है महात्मा मुस्कुराए और बोले मैं तुम्हें एक कहानी की मदद से समझाता हूंमेरे गुरु का एक शिष्य था जो बहुत बोलता था कभी शांत नहीं रहता था जब वह दान लेने के लिए जाता तो हर घर से एक नई कहानी लेकर आता और आश्रम के दूसरे शिष्यों को सुनाता, बोलने की लत इतनी बुरी थी आश्रम के सभी दूसरे शिष्य काफ़ी परेशान रहतेहर वक्त खुद के मुंह से खुद की तारीफ करता और हमेशा खुद को गुरु के सामने सबसे बुद्धिमान और उत्तम साबित करने का प्रयास करताएक दिन गुरु ने आश्रम के सभी शिष्यों को बुलाकर कहा आप सभी को अगले एक महीने के लिए कोई ना कोई संकल्प लेना होगा इससे आपकी संकल्प शक्ति मजबूत होगी और आप में आत्मशक्ति का संचार होगा, आप सभी अपने सामर्थ्य के अनुसार कोई भी संकल्प ले सकते हैं और यदि एक महीने से पूर्व आप में से जीस किसी का भी संकल्प टूट जाएगा तो वह अपनी पुरानी दिनचर्या में वापस आ सकता हैसभी शिष्यों ने अपनी शक्ति के अनुसार संकल्प लिए और गुरु को अपने-अपने संकल्प के बारे में बताकर वहां से चले गएलेकिन वह शिष्य जो खुद को सबसे अलग दिखाना चाहता था वह सीधे गुरु की कुटिया में पहुंच गया और बोला, गुरुवर मैं कोई छोटा मोटा संकल्प नहीं लेना चाहता बल्कि एक महान संकल्प लेना चाहता हूं जो सबसे अलग और बड़ा हो, कृपया आप ही बताएं मुझे क्या संकल्प लेना चाहिएउसकी यह बात सुनकर गुरु मुस्कुराए बोले, मेरे द्वारा दिए गए संकल्प को आप पूरा नहीं कर पाओगे इसीलिए तुम खुद ही कोई संकल्प ढूंढोलेकिन वो शिष्य जिद्दी करने लगता है अब गुरु कहता है ठीक है फिर तुम्हारे लिए संकल्प यह है कि तुम्हें अगले एक महीने तक चुप रहना हैशिष्य कहता है गुरुवर यह क्या, यह तो बहुत आसान है मुझे कोई मुश्किल संकल्प दो, गुरु ने कहा फिलहाल यही काफी है आप इसको पहले पूरा करके दिखाओशिष्य ने गुरु की बात मान ली और वह उसी समय चुप हो गया और पलटकर कुटिया से बाहर चला गया उसे चुप रहना बहुत आसान लग रहा था उसने एक दिन तो जैसे तैसे चुप रहकर काट लिया लेकिन दूसरे दिन से उसके मन में ना बोलने का बोझ बढ़ने लगा और तीसरे दिन उसे भारीपन महसूस होने लगाअब वह शिष्य न बोलने की बेचैनी के कारण बीमार पड़ गया उसका सिर फटा जा रहा था उसका खाने पीने तक का मन नहीं था वह सिर्फ बोलना चाहता थावह गुरु के पास गया और उनके सामने बैठकर लिखकर उन्हें बताया गुरुदेव मैं बोलना चाहता हूं बिना बोले मुझे सांस नहीं आ रही है मेरा दम घुटता जा रहा हैगुरु ने कहा तो ठीक है आप अपना संकल्प तोड़ सकते हो पर याद रखो जो व्यक्ति अपना संकल्प पूरा कर लेता है वह अपनी आंतरिक शक्ति को बढ़ाता है और जो अपनी आंतरिक शक्ति को बढ़ा लेता है वह समाज और जागृति की राह पर आगे बढ़ जाता हैसंकल्प का लेना भी तुम्हारे हाथ में था और इसे तोड़ना भी तुम्हारे हाथ में हैगुरु की यह बात उस शिष्य के दिल में चोट कर गइ, वह बिना कुछ बोले वहां से वापस चला गया और खुद को अपनी कुटिया में बंद कर लिया अब वह केवल अपने जरूरी कामों के लिए ही इस कुटिया से बाहर निकलता बाकी सारे समय कुटिया के अंदर ही बैठा रहा15 दिन बीत चुके थे और आश्रम के लगभग सभी शिष्यों का संकल्प अब तक टूट चुका था लेकिन उसका संकल्प अभी भी जारी थासंकल्प लेने के बाद से अब तक उसने एक शब्द भी नहीं बोला, सारा आश्रम हैरान था कि इतना बोलने वाला इंसान चुप कैसे हो सकता है15 दिन बीतने के बाद वह दोबारा अपने गुरु के पास गया और लिखकर बताया है गुरुदेव मैं बाहर से तो चुप हूं लेकिन मेरे भीतर बहुत सी आवाजें हैं मन तो बोलता ही जा रहा है उसका क्या करूगुरु ने कहा तुम तो चुप हो लेकिन जब तक लोगों की आवाजें तुम्हारे कानों में उतरती रहेगी तुम्हारा मन बोलता रहेगा क्योंकि इसे तो आदत है तुम भले ही बाहर से चुप रहोतुम्हें इन बातों और इन आवाजों से दूर जाना चाहिए शिष्य गुरु को प्रणाम कर जंगल की तरफ चला जाता है कई दिन बीत जाते है संकल्प का समय भी पूरा हो जाता है लेकिन शिष्य लौटकर नहीं आयाआश्रम में सभी को डर था कि कहीं जंगली जानवर उसे खाना ना जाए, इसलिए उसे ढूंढने की भी कोशिश की गई लेकिन वह कहीं नहीं मिलाएक दिन एक शिष्य गुरु के पास गया और बोला गुरुदेव हमारे उस अधिक बोलने वाले भाई के साथ क्या हुआ होगा क्या जानवरो ने उसे मार दियागुरु ने कहा, हो सकता है कि जानवरों ने उसे अपना शिकार बना लिया हो लेकिन उसके ना लौटने की एक दूसरी वजह भी हो सकती है शायद उसे वह मिल गया है जिसके लिए वह गया थासमय बीतता गया और सभी लोगों ने उसके आने की उम्मीद छोड़ दी थी, तभी अचानक एक दिन वह शिष्य अपने आश्रम में वापस लौट आता हैलेकिन अब वह, वह नहीं था जो यहां से गया था वह कुछ और ही बनकर वापस आया था उसके अंदर एक गजब का बदलाव था उसके चेहरे पर ठहराव और आंखों में बड़ी शांति थी आश्रम में आते ही सभी गुरु भाइयों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया और बातें करने लग गएवह भी अपने भाइयों से बातें करने लगा उससे बात करने
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भारतीय सूतीवस्त्र उद्योग को किसने बर्बाद किया / Cotton Textile Industry Ruined
ये सच है कि एक वक्त था तब सूतीवस्त्र में भारतीयों का डंका सारी दुनिया में बजता थाये सच है कि पश्चिमी देशों को सबसे पहले सूती वस्त्र भारतीयों ने पहनाए थेये भी सच है कि किसी जमाने में भारतीय सूतीवस्त्र कारीगरों की पूरी दुनिया दीवानी थीतो फिर क्या हुआ ऐसा की एकाएक भारतीय सूतीवस्त्र उद्योग पूरा का पूरा बर्बाद हो गया… क्या लगा था भारतीय सूती वस्त्र उद्योग को ग्रहण या फिर हुई थी इंटरनेशनल स्तर पर एक बड़ी साजिश तो आइए शुरू से शुरू करते हैं Cotton Textile Industry Ruined भारतीय सूतीवस्त्र उद्योग एक पर्शियन राजदूत जब भारत से अपने देश वापस गया तो अपने राजा को नारियल भेंट किया, तो दरबारीयो को काफी अचरज हुआ कि राजदूत ने सुल्तान को सिर्फ नारियल भेंट किया है लेकिन उनका यह अचरज तब आश्चर्य में बदल गया जब नारियल को खोला गया. उस नारियल से 210 मीटर लम्बा मलमल का कपड़ा निकला… यह तो सिर्फ एक नमूना मात्र है भारतीय सूतीवस्त्र उद्योग का इतिहास और इसकी विशेषताएं इससे भी और कहीं ज्यादा थी, कहा जाता है कपास की खेती सबसे पहले भारत में ही की गई थी, कपास से धागा बनाया गया और धागे से कपड़ा बनाने के लिए लकड़ी की तकली बनाई गई धीरे धीरे कपड़ा बनाने की इस प्रक्रिया ने एक बड़े उधोग का स्वरूप धारण किया और भारत बना सूतीवस्त्र का शिरमोर, कपड़ों पर रंग लगाना और इन्हें वैज्ञानिक पद्धति से बनाना यह सब भारत में आज से हजारों वर्ष पहले होने लगा था उसे जमाने के भारत में सूती वस्त्र बनाने वाले कारीगरों को बुनकर कहा जाता था, यह बात तब की है जब भारत सूती वस्त्रो का घर था तब वस्त्र बनाने की कला ऐसी थी कि, आज की उन्नत मशीनों पर बनाए गए कपड़ों से भी उसे जमाने के कपड़े अच्छे थे कई इतिहासकारों ने लिखा है कि… सूतीवस्त्र उद्योग को किसने बर्बाद किया मतलब… मतलब यह की भारतीय सूतीवस्त्र उद्योग की गुणवत्ता का कोई जवाब नहीं था, दुनिया में ऐसे कहीं ओर बुनकर भी नहीं थे, साथ ही दुनिया भर में इन कपड़ों की डिमांड भी थी तो भारत में कच्चा माल यानी कपास भी खूब मात्रा में था, फिर ऐसा क्या हुआ कि भारतीय सूतीवस्त्र उद्योग धीरे-धीरे विलुप्त हो गया भारतीय सूतीवस्त्र उद्योग विलुप्त क्यों हुआ, इसको जानने के लिए चलना पड़ेगा 18वीं शताब्दी के मध्य में, 1757 के आसपास वह समय था जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत पर शासन शुरू हो चुका था, हालांकि भारतीय सूतीवस्त्र उद्योग अंग्रेजों को तभी से खटक रहा था जब वह पहली बार भारत में व्यापार करने के लिए आए थे, लेकिन उस समय वे कुछ ज्यादा कर नहीं सकते थे इसलिए उनका उद्देश्य था व्यापार करके खूब पैसा कमाना और ऐसा किया भी 1810 के आसपास यह वह समय था जब भारत से विदेश में होने वाले निर्यात में 30% से भी ज्यादा हिस्सेदारी सिर्फ सूतीवस्त्र की ही होती थी, लेकिन इसके बाद जैसे-जैसे भारत पर अंग्रेजों की पकड़ तेज होती गई वैसे-वैसे अंग्रेज सूती वस्त्र को कमजोर करते चले गए 1850 आते आते सूतीवस्त्र उद्योग की स्थिति यह हो गई की जो निर्यात कभी 30% से ज्यादा हुआ करता था वह अब मात्र 3 % रह गया…. इन आकंड़ो से अनुमान लगाया जा सकता है की मात्रा 40 वर्ष में ही किस तरह भारतीय सूती वस्त्र उद्योग की कमर तोड़ी गई अंग्रेजों ने भारतीय सूतीवस्त्र उद्योग को तय करके ख़त्म किया था, और इसके लिए कई प्रकार के हथकंडे अपनाए गए जैसे Cotton Textile Industry Ruined conclusion धीरे-धीरे स्थिति यह हुई कि भारत में उत्पादन होने वाले कपास को, इंग्लैंड भेजे जाने लगा और इंग्लैंड में कपड़ा बनाकर फिर उन कपड़ों को वापस भारत में निर्यात करने लगे. एक समय आया तब इंग्लैंड ने भारतीय बाजार के साथ-साथ उन सभी बाजारों पर अपना कब्जा कर लिया जहां कभी भारतीय सूतीवस्त्र उद्योग का दबदबा था और इस प्रकार जो चाल अंग्रेजों ने भारतीय सूती वस्त्र उद्योग को तबाह करने के लिए चली थी उसमें वह सफल रहे… और एक समय दुनिया भर में अपना लोहा मनाने वाले भारतीय सूतीवस्त्र उद्योग को खत्म कर दिया 👉 रहस्यमयी गांव जो एक रात में गायब हो गया 👉 हावड़ा ब्रिज का अनदेखा रहस्य भारतीय सूतीवस्त्र उद्योग / Cotton Textile Industry Ruined या इससे सम्बंधित जानकारी के लिए यह आर्टिकल हेल्पफुल साबित हुआ है आपके सुझाव और कमेंट सादर आमंत्रित है इसी प्रकार की जानकारीयो को वीडियो के रूप में जानने के लिए हमारे युटुब चैनल Click Here का विजिट करें, शुक्रिया
बैंक खाता बंद होने पर क्या करें / Bank Account Closed..?
सुबह-सुबह उठने के बाद जितना जरूरी पहले चाय पीना नहीं है उससे ज्यादा जरूरी है बैंक अकाउंट का एक्टिवेट रहना… But क्या हो जब चाय के लिए खरीदे गए दूध का पेमेंट करने के लिए आप मोबाइल निकालो तो पता चले कि बैंक अकाउंट ही बंद हो चुका है तो आईए जानते हैं की बैंक अकाउंट बंद / Bank Account Closed होने के क्या-क्या कारण हो सकते हैं और इन्हें वापस एक्टिवेट कैसे कराया जा सकता है. पहला कारण सबसे पहला कारण आपका अकाउंट का पुराना होना, बैंक समय समय पर अपने ग्राहकों से केवाईसी लेता रहता है जैसे ही जो जो अकाउंट KYC की लिस्ट में आते है बैंक उन खातो को इनेक्टिव कर देते है KYC के कारण बंद हुए अकाउंट को वापस एक्टिव करवाने के लिए ग्राहक को अपनी ब्रांच में जाना होता है जहा अपने डॉक्यूमेंट की फोटो कॉपी के साथ एक केवाईसी का फॉर्म सबमिट करना होता है डॉक्यूमेंट में जैसेआधारकार्ड पैन कार्ड एक पासपोर्ट साइज फोटो या जो भी बैंक के अनुसार जरूरी हो… बैंक उनकी जांच करने के बाद ग्राहक के अकाउंट को वापस एक्टिव कर देते हैं दूसरा माइनर अकाउंट का होना… न्यू अकाउंट खुलवाते समय अगर ग्राहक की उम्र18 वर्ष से कम है तो उसे माइनर अकाउंट की श्रेणी में ओपन किया जाता है लेकिन जैसे ही खाताधारक उम्र 18 साल हो जाती है तो बैंक इन खातो को इनेक्टिव कर देती है अब ऐसे अकाउंट को वापस एक्टिव करवाने के लिय ग्राहक को अपनी ब्रांच विजित करना होता है ब्रांच यहाँ अकाउंट को माइनर से मेजर में कन्वर्ट करने का एक फॉर्म लेती है और डॉक्यूमेंट चेक करने के बाद अकाउंट को एक्टिव कर दिया जाता है तीसरा लंबे समय तक एक्टिविटी न होना ऐसे खाते जिन से लंबे समय तक विड्रॉल न हो या फिर अकाउंट जीरो बैलेंस पर रखा जा रहा हो तो बैंक ऐसे खातों को इनेक्टिव कर देती है खाते को वापस एक्टिव करवाने के लिए ग्राहक को अपनी ब्रांच विजिट करना होता है और संबंधित डॉक्यूमेंट के साथ एक एप्लीकेशन देनी होती है इसके बाद बैंक उक्त अकाउंट को वापस एक्टिव कर देती है चौथा हाइ ट्रांजैक्शन वैल्यू ऐसे अकाउंट जिन से ज्यादा लेनदेन किया जा रहा हो या फिर एक साथ बड़े अमाउंट का विड्रॉल या डिपाजिट किया गया हो ऐसे अकाउंट को बैंक संदिग्ध अकाउंट की श्रेणी में रखते हुए इनेक्टिव कर देती है इन खातों को वापस एक्टिव करवाने के लिए ग्राहक को अपनी ब्रांच में जाना होता है और केवाईसी डॉक्यूमेंट के साथ संबंधित लेनदेन की जानकारी ब्रांच को उपलब्ध करवानी होती है ब्रांच सभी डाक्यूमेंट्स को चेक करने के बाद अगर सही पाया जाता है तो उक्त अकाउंट को एक्टिव कर देती है पाचवां साइबर फ्रॉड में अकाउंट का बंद होना अगर अकाउंट में अनऑथराइज्ड कोई ट्रांजैक्शन होता है या फिर फ्रॉड किए हुए अमाउंट में से कुछ पेमेंट रिसीव होता है तो उक्त अकाउंट फ्रीज या फिर अमाउंट होल्ड हो सकता है, ऐसी स्थिति में बैंक के पास ज्यादा पावर नहीं होता हैय ह काम साइबर सेल द्वारा या फिर उनके निर्देशों के अनुसार बैंक करता है अगर साइबर फ्रॉड में अकाउंट फ्री होता है या अमाउंट हॉल होता है तो सबसे पहले ब्रांच जाकर अपने अकाउंट में क्या और कैसे हुआ है इसकी जानकारी लेनी चाहिए, साइबर फ्रॉड में अकाउंट होल्ड होने पर साइबर सेल द्वारा उक्त ब्रांच को एक मेल भेजा जाता है जिसका प्रिंटआउट ग्राहक ले सकता है इस मेल में संबंधित फ्रॉड शिकायत को लेकर जांच कर रहे जांच अधिकारी के कांटेक्ट नंबर और मेल रहता है अब ग्राहक चाहे तो मेल या फिर फोन के माध्यम से कांटेक्ट कर सकता है अगर जरूरत हो तो संबंधित साइबर थाने में जाकर भी विजिट कर सकता है अकाउंट को अनफ्रीज करने के लिए बैंक शाखा को इस साइबर सेल द्वारा अनफ्रीज का मेल करवाना होता है अगर बैंक को यह मेल प्राप्त हो जाता है तो बैंक उस अकाउंट को अनफ्रीज या फिर अमाउंट को उन्होल्ड कर देते हैं बैंक खाता बंद होने पर क्या करें 👉 रहस्यमयी गांव जो एक रात में गायब हो गया 👉 हावड़ा ब्रिज का अनदेखा रहस्य बैंक खाता बंद होने पर क्या करें / Bank Account Closed..? या इससे सम्बंधित जानकारी के लिए यह आर्टिकल हेल्पफुल साबित हुआ है आपके सुझाव और कमेंट सादर आमंत्रित है इसी प्रकार की जानकारीयो को वीडियो के रूप में जानने के लिए हमारे युटुब चैनल Click Here का विजिट करें, शुक्रिया. Bank Account Closed बैंक अकाउंट बंद होने की स्थिति में ग्राहक को सबसे पहले अपनी ब्रांच में विजिट करना चाहिए और इस बात का पता लगाना होता है कि अकाउंट क्लोज या फिर होल्ड किस वजह से हुआ है इसके बाद ग्राहक को अपनी KYC, एक नवीनतम पासपोर्ट साइज फोटो और समस्या से संबंधित दस्तावेज के साथ एप्लीकेशन बैंक को देनी होती है इसके बाद ब्रांच डॉक्यूमेंट की जांच करती है और जानकारी सही पाई जाती है तो अकाउंट को वापस ओपन या फिर अनफ्रीज कर दिया जाता है बैंक अकाउंट बंद होने पर क्या करे, बैंक अकाउंट बंद हो गया क्या करे, अकाउंट बंद होने पर क्या करे, बैंक अकाउंट बंद हो गया है चालू कैसे करे, मेरा अकाउंट ब्लोक हो गया, बंद अकाउंट कैसे चालू करे, बैंक अकाउंट बंद होने पर क्या करें
अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा | Anpadh jaat Padha Barabar
Anpadh jaat Padha Barabar अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा … यह कहावत आपने अपने गावं के बड़े बुजर्गो से कई बार सुनी होगी, पर क्या आप ने कभी सोचा है यह कहावत किसने कही थी और किस घटना पर कही थी तो आइए इसको सुरु से सुरु करते है Anpadh jaat Padha Barabar यह घटना है कोई 1270 के आसपास की है, जब दिल्ली में बादशाह बलबन का राज था उसके दरबार में एक अमीर दरबारी भी था जिसके तीन बेटे थे, कहा जाता है की उस दरबारी के पास उन्नीस घोड़े भी थे जब उसका अंत समय आया तो उसने अपने बेटों के नाम एक वसीयत लिखी थी वसीयत क्या थी अमीर दरबारी के पास वसीयत में जो उन्नीस / 19 घोड़े थे, उसकी उसने वसीयत इस प्रकार लिखी थी अब तीनों बेटे अपने पिताजी की तेहरवी करने के बाद इन घोड़ो का बंटवारा करने के लिए बैठे, पर यहाँ एक समस्या आ गई… समस्या ये की 19 घोड़ो का ना तो आधा किया जा सकता और ना ही चोथाई व पांचवा हिसा किया जा सकता जब तीनो भाई इस बटवारे को नही कर पाए तो वो बादशाह के दरबार में चले गये और बादशाह से इस बटवारे को सही सही करवाने के लिए गुजारिस की… बादशाह बलबन ने सभी दरबारियों को एक जगह किया और दरबार में यह फैसला करने लगे लेकिन यहाँ भी वही हुआ की कोई भी दरबारी संतोषजनक फैसला नही कर पाया.. उसी समय बादशाह के सबसे खास और प्रसिद्ध कवि ‘आमिर खुशरो’ जो बलबन के दरबारी कवि भी थे वो भी इस दरबार में थे उसने जाटो की पंचायतो के बारे में काफी सूना था अमिर खुशरो ने बादशाह से कहा की मैं जाटो के इलाको में खूब घुमा हूँ और उनकी खूब पंचायती फैसले भी सुने है अगर इस समस्या का कोई हल कर सकता है तो वो है सर्वखाप पंचायत का कोई ‘जाट मुखिया’ लेकिन इसके विरुद सभी दरबारियों ने इंकार कर दिया की यह फेसला तो हो ही नही सकता है चुकीं, बादशाह बलबन के पास कोई दूसरा ऑप्शन नहीं था, लिहाजा खुशरो की बात को स्वीकार करते हुए बादशाह ने किसी जाट मुखिया को बुलाने का फेसला किया.. और उसी समय सर्वखाप पंचायत के किसी खास आदमी को चिट्टी देकर गांव ‘सौरम’ जिला ‘मुज्फ्फरनगर’ भेजा गया (ध्यान रहे– इस गांव में सर्वखाप पंचायत का मुख्यालय आज भी मोजूद है) चिट्टी पाकर पंचायत के प्रधानपंच चौधरी रामसहाय सूबेदार को दिल्ली भेजा गया… चौधरी साहब अपने घोड़े पर सवार होकर बादशाह के दरबार पहुंचे, अब बादशाह ने सभी दरबारियों को एक खुले मैदान में बैठाया और वहीं पर 19 घोड़ो को लाइन से बंधवा दिया गया चौधरी साहब ने अपना परिचय देते हुए शुरू किया ‘शायद इतना तो आपको पता होगा की हमारे यहाँ राजा और प्रजा का सम्बंध बाप-बेटे जैसा होता है और प्रजा की संपति पर राजा का भी हक होता है इसलिए में जो घोड़ा लाया हु, उसपर राजा जी का भी हक है इसलिए में अपना घोड़ा राजा जी को भेंट करता हु… और मेरे घोड़े को भी इन 19 घोड़ो में मिलाने की इजाजत चाहता हूँ इसके बाद बंटवारे का फेसला सुनाऊंगा बादशाह बलबन ने इसकी इजाजत देते हुए फैसला सुनने की इजाजत दे दी, चौधरी साहब ने अपने घोड़े को उन 19 घोड़ो की लाइन में सबसे अंत में बांध दिया … जिससे घोड़ो की गिनती अब 19 और 1 यानि 20 हो गई अब चौधरी साहब ने बटवारा इस प्रकार किया … अब जब तीनों बेटो का हिसाब बराबर हो गया तो अंत में एक घोड़ा बच गया… जो वैसे भी चौधरी साहब का था, बंटवारा पूरा करके चौधरी साहब ने कहा – मेरा घोड़ा तो बच गया है बादशाह आपकी इजाजत हो तो में मेरा घोड़ा वापस ले लू और बादशाह ने हाँ कहते हुए इस फैसले को स्वीकार कर लिया… इस फैसले से प्रभावित होकर बादशाह बलबन और वहाँ बैठे सारे दरबारियों ने चौधरी साहब की बहुत तारीफ की थी, कहते है जब चौधरी साहब अपने घोड़े पर बैठकर जाने लगे… तो वहा मोजूद ग़ाव के लोग नाचने लग गए थे … इसी वक्त यानि जब चौधरी साहब अपने गांव की जाने लगे तो ‘अमीर खुसरो’ ने जोर से कहा- “अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा ” और वहां मोजूद सारी भीड़ इस पंक्ति को दोहराने लगी… तब यह कहावत राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उतर प्रदेश तथा दूर दूर तक फेल गई… जो आज तक चली आ रही है Anpadh Jaat FAQ यह भी जाने 👇 👉 रहस्यमयी गांव जो एक रात में गायब हो गया 👉 हावड़ा ब्रिज का अनदेखा रहस्य Anpadh jaat Padha Barabar या अनपढ़ जाट पढ़ा बराबर, पढ़ा जाट खुदा बराबर या इससे सम्बंधित जानकारी के लिए यह आर्टिकल हेल्पफुल साबित हुआ है आपके सुझाव और कमेंट सादर आमंत्रित है इसी प्रकार की जानकारीयो को वीडियो के रूप में जानने के लिए हमारे युटुब चैनल Click Here का विजिट करें, Anpadh jaat Padha Barabar शुक्रिया
SBI Yono क्या है | योनो ऐप इंस्टॉलेशन, उपयोग और फायदे ?
SBI Yono एक डिजिटल बैंकिंग एप्लिकेशन है जिसे SBI ने अपने ग्राहकों के लिए बनाया है इस ऐप का उद्देश्य ग्राहकों को सुविधाजनक और आसान बैंकिंग सेवाएं प्रदान करना है