क्या हावड़ा ब्रिज चाबी से खुलता था | Howrah Bridge key

हावड़ा ब्रिज के कई रोचंक तथ्य है तो कई प्रकार के किसे, कथा और कहानियां भी है और इन्ही में से एक दंतकथा है की हावड़ा ब्रिज चाबी से खुलता था तो आइए जानते है की आखिर हावड़ा ब्रिज के चाबी से खुलने की वास्तविक सचाई क्या है Howrah Bridge key

हावड़ा ब्रिज कैसे खुलता है

हावड़ा ब्रिज पुरे विश्व में अपनी बनावट के लिए विख्यात है जोकि पश्चिम बंगाल के कोलकाता और हावड़ा को आपस में जोड़ता है यह असल में एक कैंटीलीवर ब्रिज है यानी झूले जैसा पुल है यह हुगली नदी के दोनों और बने केवल चार खम्बो पर टिका है जो बिना किसी नट बोल्ट के एक प्लेटफोर्म पर बना हुआ है

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इसका मतलब साफ है की जब यह ब्रिज खुलता ही नहीं है तो फिर चाबी कहा से आई

कुल मिलाकर बात यह है की

Howrah Bridge key से खुलता था, Howrah Bridge key का होना, Howrah Bridge key की किसके पास है या Howrah Bridge key को अंग्रेज जाते जाते पानी में फैक गए जैसे सवाल सिर्फ दन्त कथा या फिर यु कहे की सरासर झूठी अफवाह मात्र ही है … लेकिन अब यहाँ एक सवाल जरुर आता है की अगर हावड़ा ब्रिज खुलता ही नहीं था तो फिर …

  • Howrah Bridge key se Khulata Tha ?
  • Howrah Bridge key Kisak pass Hai ?
  • Howrah Bridge key Ko pani me kyo faika Gaya ?
  • Howrah Bridge key ka Kya Huaa ?

जैसे सवाल कहा से आए , या फिर इन कहानियों की सुरुवात कहा से हुई तो Howrah Bridge key को समझने के लिए… पहले हावड़ा ब्रिज के इतिहास को समझना होगा यहाँ ध्यान देना है की हावड़ा ब्रिज के दो अलग अलग भागो का इतिहास है

वर्तमान हावड़ा ब्रिज का इतिहास 

सन 1926 को न्यू हावड़ा ब्रिज एक्ट पास किया गया… ध्यान रहे यह न्यू हावड़ा ब्रिज था मतलब यहाँ पहले से भी एक ब्रिज था जिसका जिक्र आगे करेंगे, लेकिन इसका  क्या हुआ – कई कारणों से इसका निर्माण टलता गया और फिर आया वक्त 1935 का  जब सरकार ने यानि उस समय जो ब्रिटिश सरकार थी उसने  हावड़ा ब्रिज अमेंडमेंट एक्ट 1935 पारित किया और एक ब्रेथवेट एंड जेसप कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (बीबीजे) को इसका टेंडर दे दिया

अब इस कंपनी ने 1936 में इस ब्रिज का निर्माण शुरू किया जो की 1942 को पूरा हुआ और 3 फरवरी 1943 को इसे आम लोगों के लिए खोल दिया गया जो आज तक प्रीति दिन एक लाख से ज्यादा वाहनों का वजन उठा रहा है

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पुराने हावड़ा ब्रिज का इतिहास

अभी हमने ऊपर बात की थी की यहाँ एक पहले से ही ब्रिज था — तो यहाँ उसकों समझते है वर्तमान ब्रिज से पहले / मतलब सबसे पहले 1874 में हुगली नहीं पर कोलकता और हावड़ा दोनों शहरों को जोड़ने वाला एक पोंटून ब्रिज बनाया गया था, इसको पीपा ब्रिज भी बोला जाता है क्योंकि यह ब्रिज लोहे के बने पीपों और लकड़ी की नावों के ऊपर बनाया गया था मतलब यह नदी पर तेरता हुआ ब्रिज था 

इस ब्रिज की एक बात खास थी की इस को इस हिसाब से डिजाइन किया गया था की इसको बीच में से अलग किया जा सके, मतलब जरुरत पड़ने पर दो अलग अलग भागो में किया जा सके| इसकी एक वजह भी थी कि उस समय ज्यादातर व्यापार हुगली नदी के माध्यम से होता था चुकी यह ब्रिज नदी पर तैरता हुआ ब्रिज था इसलिए यह जहाजों का रास्ता रोक लेता, इसलिय इस समस्या से छुटकारा पाने के लिय जहाजों के आने पर इस ब्रिज को ही खोलकर दो भागों में बांट दिया जाता था और जहाजो को निकाल दिया जाता।

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अब जब इन दोनों हावड़ा ब्रिज को समझ चुके है तो बात आती, हावड़ा ब्रिज की चाबी की 

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तो हुआ कुछ यु होगा… यह सिर्फ अनुमान है की कोई ऐसा व्यक्ति जिसने कई वर्षो पहले हावड़ा के पोंटून ब्रिज को खुलते और बंद होते देखा होगा… और फिर कई वर्षो बाद इसी जगह बने कैंटीलीवर ब्रिज को देखा होगा 

वैसे भी कहते है पहले के लोग ज्यादा भोले होते थे और किसी भी चीज पर ज्यादा नहीं सोचा करते थे, चुकी पुराना ब्रिज खुलता था जबकि नया ब्रिज ऐसा नहीं था 

इस बात को इस तथ्य से भी बल मिल जाता है की वर्तमान ब्रिज का निर्माण देश की आजादी से कुछ ही वर्ष पहले ही हुआ था, तो लोगो को लगा होगा की इस ब्रिज की चाबी को अंग्रेज साथ ले गए या फिर किसी ने अंदाजा लगा लिया होगा की चाबी को अंग्रेज नदी में फेक गए 

जब बात कोलकाता से निकलकर आगे बढ़ी तो… तो बात से बात जुड़ती गई और बात का बतंगड़ बन गया वैसे भी हमारे समाज में अधिकतर कुरीतियाँ, पाखंड या अतथ्यात्मक कहानियाँ ऐसे ही बनती है

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