सिराजुद्दौला ने जगत सेठ को अपने दरबार बुलाया और युद्ध खर्च के लिए 3करोड़ रुपए की मांग की 1750 में यह रकम काफी बड़ी थी जब जगत सेठ ने अपना जवाब ना में दिया तो नवाब ने उन्हें एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया, कहते है इसी थपड़ नें भारत को अंग्रेजो का गुलाम बना दिया था, तो लीजिए कहानी को शुरू से शुरू करते हैं Jagat Seth
Jagat Seth
ब्रिटिश राज आने से पहले भारत आर्थिक रूप से काफी मजबूत था, भारत को यु ही सोने की चिड़िया नहीं कहा जाता था इसके पीछे कई कारण थे
राजे रजवाड़ों से लेकर मुगलों तक के खजाने भरे हुए थे तो व्यापारीयों से लेकर आम जनता तक सभी धनी थे
अनगिनत लोगों के पास बेसुमार धन दौलत थी, लेकिन उस वक्त एक परिवार ऐसा भी था जिसके पास उस समय करोडो में दोलत थी, इसलिए इस परिवार के सेठ फतेहचंद को 1723 में मुहम्मदसाह ने जगत सेठ की उपादी दि थी
बात है 17वी शताब्दी की, राजस्थान के नागौर के एक मारवाड़ी जैन परिवार हीरानंद साहू के घर एक बेटा होता है नाम रखा गया माणिकचंद,…इधर माणिकचंद धीरे धीरे बड़ा होता है तो उधर हीरानंद साहू फैमिली व्यापार के अलावा, कुछ नए व्यापार और बेहतर संभावनाओं की खोज में बिहार के पटना पहुंच जाता है,
पटना में हीरानंद साहू ने साल्टपिटर यानि पोटेशियम नाइट्रेट का कारोबार शुरू किया जिसका इस्तेमाल जंग अवरोधक गन पाउडर और पटाखों में किया जाता था. जैसे-जैसे हीरानंद साहू को इस व्यापार में प्रॉफिट हुआ तो हीरानंद ने पैसों से पैसा बनाने की अपनी खानदानी कला को आगे बढ़ाया और एक नया बिजनेस शुरू किया, लोन देना या उसे समय के लिए कहे तो पैसा ब्याज पर देना
कहते हैं हीरानंद साहू का भाग्य इतना तेज था, कि मानो पांचो उंगलियां घी में और सर कड़ाई में, यह बैंकर का काम भी हीरानंद साहू का कुछ ही दिनों में इतना फला-फुला की हीरानंद कुछ ही दिनों में मुगलों से लेकर ईस्ट इंडिया कंपनी तक के लोगों को लोन के रूप में पैसा देने लगे, हीरानंद साहू नें ईस्ट इंडिया कंपनी को काफी पैसे उधार दिए और उनके साथ कारोबारी संबंध भी बनाए
अब अगली पीढ़ी यानि माणिक चंद ने अपने पिता का बिजनेस संभाला और चारों ओर फैलाना शुरू किया और नए क्षेत्रों में कदम रखा इसमें पैसे ब्याज पर देना भी एक बिजनेस था जल्दी माणिक चंद की दोस्ती बंगाल के दीवान मुर्शिद कुली खान के साथ हो गई
आगे चलकर वह बंगाल सल्तनत के पैसे और टैक्स को संभालने लगे उनका पूरा परिवार बंगाल के मुर्शिदाबाद में बस गया
माणिक चंद के बाद परिवार की बागडोर फतेहचंद के हाथों में आ गई जिनके समय में यह परिवार अपनी बुलंदियों पर पहुंचा…
ढाका, पटना, दिल्ली सहित बंगाल और उत्तरी भारत के महत्त्वपूर्ण शहरों में इस घराने की शाखाएं थी इसका मुख्य मुख्यालय मुर्शिदाबाद में ही था
जगत सेठ परिवार का ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ लोन की अदायगी, सर्राफा की खरीद – बिक्री आदि का लेनदेन था
एक ब्रिटिश लेखक के अनुसार यह हिंदू व्यापारी परिवार मुगल साम्राज्य में सबसे धनी था और इसके मुखिया का बंगाल सरकार पर जबरदस्त प्रभाव था इस घराने की तुलना बैंक ऑफ इंग्लैंड से की गई थी, कुछ इतिहासकारों का तो यह भी मानना है उस समय इंग्लैंड की कुल GDP से ज्यादा धन जगत सेठ घराने के पास था
इस परिवार ने बंगाल सरकार के लिए कई ऐसे कार्य किए जो बैंक ऑफ इंग्लैंड ने 18वीं शताब्दी में ब्रिटिश सरकार के लिए किए थे, इस परिवार की आय के कई स्रोत थे यह सरकारी राजस्व यानी कि टैक्स वसूलते थे और नवाब के कोषाध्यक्ष के रूप में काम करते थे उस समय जमीदार लोग इस घराने के माध्यम से अपने राजस्व का भुगतान करते थे और नवाब फिर इसके माध्यम से दिल्ली को वार्षिक राजस्व का भुगतान करते थे इसके अलावा यह सिक्कों के उत्पादन या ढलाई का काम करते थे
कितने अमीर थे जगत सेठ फतेहचंद अपने समय में 2000 सैनिकों की सेना रखते थे और वह भी अपने खर्चों पर बंगाल बिहार और उड़ीसा में आने वाला सारा राजस्व इनके जरिए ही आता था उनके पास कितना सोना चांदी और पन्ना था इसका अंदाजा लगाना मुश्किल था उस वक्त यह कहावत चलन में थी कि जगत सेठ अगर चाहे तो सोने और चांदी की दीवार बनाकर गंगा नदी को रोक सकते हैं
समय बिताता गया और अब इस जगत सेठ परिवार की बागडोर संभाली मेहताब राय ने इस समय बंगाल में अलीवर्दी खान के समय में सेठ मेहताब राय और उनके चचेरे भाई स्वरूप चंद का बहुत प्रभाव था, सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था
लेकिन कहते हैं ना कि समय आता है तो समय जाता भी है
बंगाल में अलीवर्दी खान के उत्तराधिकारी सिराजुद्दौला बने, सिराजुद्दौला ने जगत सेठ को अपने दरबार बुलाया और युद्ध में खर्च के लिए 3करोड़ रुपए की मांग की 1750 में यह रकम काफी बड़ी थी जब जगत सेठ ने अपना जवाब ना में दिया तो नवाब ने उन्हें एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया, कहते है इसी थपड़ नें भारत को अंग्रेजो का गुलाम बना दिया था
कैसे… सिराजुद्दौला से दोस्ती टूटने के बाद जगतसेठ को अपने धन दौलत की सुरक्षा की चिंता होने लगी, बदले में इन्होंनें, साजिश रची इनका मकसद था सिराजुद्दौला को नवाब की गद्दी से हटाना इसके लिए जगत सेठ ने अंग्रेजो को उकसाया और 1757 के प्लासी के युद्ध के दौरान अंग्रेजों की खूब फंडिंग की… परिणाम- प्लासी की लड़ाई में 3000 अंग्रेज सैनिकों की टुकड़ी ने नवाब सिराजुद्दौला के 50000 सैनिकों की सेना को हरा दिया था
प्लासी की लड़ाई में सिराजुद्दौला के मारे जाने के बाद मीर जाफर नवाब बना और जगत सेठ घराने का दबदबा वापस कायम हुआ… लेकिन कुछ समय बाद ही मीर कासिम, मीर जाफर के उत्तराधिकारी बने… जो उन्हें राजद्रोही मानता था, 1764 में बक्सर की लड़ाई से कुछ समय पहले जगत सेठ मेहताब राय और उनके चचेरे भाई स्वरूप चंद को मीर कासिम के आदेश पर राजद्रोह के आरोप में पकड़ लिया गया और गोली मार दी गई
कहा जाता है कि जब उन्हें गोली मारी गई तब मेहताब राय दुनिया के सबसे अमीर आदमी थे मेहताब राय और स्वरूप चंद की मृत्यु के बाद उनका व्यापार ढहने लगा, जगत सेठ परिवार ने अपने स्वामित्व वाली ज्यादातर जमीन पर से नियंत्रण खो दिया
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनसे जो पैसा उधार लिया था वह कभी भी उन्हें वापस नहीं किया और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी नें बंगाल की बैंकिंग और अर्थव्यवस्था को पूर्ण रूप से अपने हाथों में ले लीया
वर्ष 1900 आते-आते जगत सेठ परिवार, लोगों की नजरों से ओझल हो गया मुगलों की तरह आज उनके वंशजों का भी कोई अता पता नहीं है
बंगाल में प्लासी के युद्ध के बाद जिस ब्रिटिश राज की नीव पड़ी उसे समाप्त होने में अगले 200 साल लग गए
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