किसान आंदोलनों की जन्मभूमि शेखावाटी | Pemaram Dhod

सुबह-सुबह का समय था हम दो दोस्त गाड़ी लेकर लोसल के वीरतेजा सर्किल से निकल रहे थे, आज वीरतेजा सर्किल की स्थिति कुछ अलग थी, हर रोज शांत, खुला और अपनत्व का भाव देने वाला वीरतेजा सर्किल आज थोड़ी भीड़ भाड़ से जकड़ा हुआ था

जैसे ही गाड़ी के ब्रेक लगाए तो दिमाग रिवर्स होकर पहुंच गया आज से 6 वर्ष पहले जब शेखावाटी में चले 13 दिन के बड़े आंदोलन के वक्त लोसल का वीरतेजा सर्किल तीन दिनों तक किस तरह जाम रहा था कई किलोमीटर गाड़ियों की लंबी लाइन, आन्दोलन पर लाखों किसान और सड़क पर गीत गाती हजारों महिलाएं

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जब मैंने पास बैठे मुकेश जी से कहा – सर चाय के साथ यादे ताजा की जाए तो मुकेश जी ने इस अध्याय को सुरु से सुरु कर दिया

ये बात है 1922 की जब किसानों पर लगने वाले लगानों मे 25 से 50 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी हुई तो किसानों ने विरोध करना सुरु कर दिया, धीरे धीरे किसान जुड़ते गए और देखते ही देखते एक मन से उठी चिंगारी प्रदर्शनो में बदल गई। किसान आंदोलन के सूत्रधार रहे रामनारायण चौधरी के नेतृत्व में किसान सेवा संघ के द्वारा संघर्ष कर सत्ता को झुकाया फिर समझौता करवाया लेकिन ठिकानों ने इसे मानने से इंकार कर दिया… लिहाज़ा रामनारायण चौधरी के नेतृत्व में सीकर आंदोलन का केंद्र बन गया…. लंदन में प्रकाशित डेली हेराल्ड में किसान क़ौम की समस्याओं को प्रकाशित करवाया गया।

किसान नेता श्री हरलाल सिंह और उनकी पत्नी किशोरी देवी ने शेखावाटी अंचल में किसान पंचायतों का गठन कर किसान क़ौम को आंदोलन के लिए तैयार किया।

सीकर के किसानो पर हो रहे अत्याचारों की गूंज भारत की केंद्रीय असेंबली तथा ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ़ कॉमन्स में भी पहुंची लिहाज़ा 8 अगस्त 1925 में ब्रिटिश संसद में शेखावाटी के किसानों की आवाज उठाई गई, चर्चा उपरांत एक जांच आयोग गठित हुआ जिसको भूमि बंदोबस्त करवाने की सलाह दी गई।

1925-28 के मध्य भू-सर्वेक्षण में जरीब को छोटा कर बेईमानी की तो इसकी शिकायत किसान क़ौम के नेताओं ने ब्रिटिश रेजीडेण्ट व महाराजा से की थी।

वहीं 1931 में राजस्थान जाट क्षेत्रीय महासभा का गठन हुआ जो किसान क़ौम के हितों की रक्षार्थ काम करने लगा, भरतपुर के जाट नेता देशराज सिंह शेखावाटी आंदोलनों से प्रभावित हुए और इसकी सक्रियता से प्रभावित होकर संघर्ष से जुड़े… राजस्थान संदेश के जरिए किसान क़ौम की समस्याओं को जन-जन तक पहुंचाया।

इन्हीं के प्रयासों से पलथाना में जाट प्रजापति महायज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें एतिहासिक रूप से साढ़े तीन लाख लोगों ने भाग लिया, इसमें मुख्य वक्ता देशराज सिंह, मास्टर चंद्र भान , चौधरी हरिसिंह व चौधरी देवीसिंह रहे… जहा बहुत से मुद्दों पर जनजागृति हुई।

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सोतिया का बास में महिलाओं के प्रति अमानवीय और गरिमा के विरुद्ध व्यवहार के प्रतिरोध के रूप में सीकर के कटराथल में 25 अप्रैल 1934 को सरदार हरलाल सिंह खर्रा की पत्नी किशोरी देवी के नेतृत्व मे 10 हजार जाट महिलाएं एकत्रित हुई, देशराज सिंह की पत्नी उत्तमा देवी मुख्य वक्ता रही…।

कूदन में जब किसान क़ौम के नेतृत्वकर्ताओं और कैप्टन वेब व शासन के लोगों के बीच वार्ता के उपरांत जब कूदन गांव के किसान नेता पेमाराम चौधरी को पशुओं को पानी पिला रही धापी देवी ने पूछा कि क्या निर्णय हुआ… तो लगान चुकाने की बात कही तो 80 वर्षीय डोकरी (बुजुर्ग महिला) ने लाठी उठाकर उस किसान नेता को ही दे मारी तो पास खड़े लोग स्थिति भांप गए और धापी दादी के गुस्से को क्रांति की ज्वाला के रूप में महसूस किया और समर्थन किया… अब आंदोलन परवान पर था…1938 तक आते-आते यह किसान आंदोलन अपनी सफलता के साथ शासन को अपने अनुकूल ही कर लिया यानी जो किसान चाहेगा वहीं होगा …!!

यह जो आज से 90-100 सौ साल पुरानी किसान क़ौम के हितों को समर्पित घटनाएं पेश की है वो सबूत हैं कि शेखावाटी अंचल का किसान अपने स्वाभिमान की ज्वाला तब भी अपने भीतर रखता था और अब भी अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में रखता था

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शेखावाटी के किसान आन्दोलनों की रीढ़ की हड्डी यहां की महिलाओं की जीवटता है… वो न केवल खेती किसानी करती है बल्कि किसान क़ौम के उसूलों पर आंच आए तो माथे पर मंढासा बांध रानी झांसी का रूप भी धारण करने से नहीं कतराती है, शेखावाटी अंचल की महिलाएं हर क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं… सेना पुलिस से लेकर शिक्षा चिकित्सा हर क्षेत्र में मजबूत पकड़ बनाते हुए अपनी कौम के मजबूत डीएनए को अपने भीतर थामे हुए हैं।

1980 के दशक में स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया यानि SFI के बैनर तले छात्र क्रांति ने यहां के युवाओं को हकों की मांग के लिए सड़कों पर आंदोलन के लिए वो यौवन दिया जिसकी मशालें देश-भर में पिछले 30-35 सालों से महसूस की जा सकती है।

विगत 30 सालो में किसान क़ौम को समर्पित 9 बड़े किसान आंदोलन अखिल भारतीय किसान यूनियन द्वारा किए जा चुके हैं जिनकी 100 प्रतिशत सफलता यह साबित करती है कि किसान नेता कामरेड अमराराम और पेमाराम की जोड़ी ने किसानों के हकों को उस स्तर तक बुलंद रखा जिस स्तर पर जनता जनार्दन चाहती थी…

विगत साल ही केंद्र की किसान क़ौम विरोधी सरकार भाजपा पार्टी की सरकार ने तीन काले कृषि कानूनों को लागू किया था जो सालभर किसानो को सड़को पर पड़े रहने को मजबूर किया, 750 किसानों के बलिदान की आहूति लेकर रद्द हुआ… दिल्ली की भाजपा की सरकार ने किसानों की दिल्ली पहुंच को दूभर करने के लिए कंटीली तारों और कीलों वाली फसल बोई उसे अब काटने की बारी आई गई, हंसिया और दरांती की सहायता से इन कांटों को काटने का वक्त आ गया है

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“हम किसान है और हमें फ़सल बोनी और काटनी दोनों आती है लिहाज़ा जयपुर दिल्ली के रास्ते में जो सरकार सूड़-अडसूट बोएगी उसे तो काटनी ही होगी… हम काट ही लेंगे … हमें खरपतवार तो पसंद ही नहीं है हम इसे पहले साफ करेंगे।”

1993 में किसान हकों को अंतर्मन में थामें श्री अमराराम ने विधायकी का चुनाव लड़ा तो जनता का आशीर्वाद मिला और यह युवा विधायक अगले 15 साल क्षेत्र की किसान क़ौम को वो नेतृत्व दिया जिसके बलबूते सम्पूर्ण देशभर की नजर धोद विधानसभा क्षेत्र पर होने लगी…

धोद का मतलब हकों की मांग लिए बुलंद आवाज़ लिए जन-मन… फिर आरक्षित सीट के चलते इन्हीं के सहयोगी पेमाराम को उम्मीदवारी दी गई, जनता जनार्दन का आशीर्वाद लेकर सदन में पहुंचे इस बीपीएल परिवार के कोई पचास एक किलो वजन लिए बुलंद आवाज़ के जरिए वह नेतृत्व दिया कि 650 से अधिक सवालों से जनता जनार्दन के हितो को सदन के पटल पर रखा लिहाज़ा श्री पेमाराम धोद विधानसभा क्षेत्र से आंदोलन गजब का उत्तराधिकारी मिला…जिसपर लोगों को गर्व महसूस होने लगा।

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फिर सेफ़रन वेव के चलते यहां लोग उस झांसे में आए जो झूठ और फरेब के ईर्द-गिर्द घूमती राजनीति को अपनी नीतियों में रखती थी, लेकिन 5 साल में ही यहां की जनता समझ चुकी थी… लिहाज़ा पांच साल में ही विदाई कर दी… विगत 5 साल में कांग्रेस विधायक श्री परसराम मोरदिया के नेतृत्व में सत्ता की जुगलबंदी मे विकास हुआ लेकिन विधानसभा क्षेत्र में विधायक जी की अनुपस्थिति के चलते लोगों ने सहजता से उपलब्ध होने वाले अपने जनप्रतिनिधि के रूप में पेमाराम की ओर उन्मुख हुए…

लम्बे राजनीतिक अनुभव और आमजन के बीच प्रभावी उपस्थिति के चलते पेमाराम के प्रति लोगों का आकर्षण अलग ही किस्म का रहा, यह चुनाव अब पेमाराम का चुनाव नहीं रह गया है न ही पार्टी का चुनाव रह गया है यह चुनाव तो अब किसान क़ौम का चुनाव हो गया है. सभी उम्मीदवारों में अनुभव और जुझारूपन के पैमानों पर पेमाराम कहीं अधिक श्रेष्ठ नजर आ रहा है. गांव देहात ढाणियों मुहल्लों में आवाज यही है… अबकी बार पेमाराम धोद विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनेगा।

किसान क़ौम की जीवटता सदैव अमर रहे।।

जय जवान जय किसान

इंकलाब ज़िंदाबाद

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