हावड़ा ब्रिज का इतिहास A to Z | Hawada Bridge

हावड़ा ब्रिज कोलकाता से हावड़ा को जोड़ने वाला एक ब्रिज है जो ना केवल देश में बलकी विदेशो में भी काफी ज्यादा चर्चा में रहता है इस Hawada Bridge के नाम कई रिकोर्ड है जो आज तक इसी के नाम बने हुए है

Hawada Bridge बंगाल में पर्यटन का मुख्य आकर्षण बन गया है यह जितना मजबूत और एक सुन्दर कलाकृति है उससे कही ज्यादा रोचक इसका इतिहास है इसमे कई प्रकार की भ्रांतिया है, लोक कथाएँ है तो इंजीनियरिंग का एक नायाब नमूना है

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हावड़ा ब्रिज की बनाने की योजना

गंगा नदी को कलकता में हुगली के नाम से जाना जाता है हुगली नदी के दोनों और शहर है एक तरफ कलकता और दूसरी तरफ हावड़ा, हावड़ा ब्रिज से पहले यहा पर व्यापार के लिए आयात-निर्यात नावों से किया जाता था लेकिन बारिश के समय में हुगली नदी अपने उफान पर रहती… जिसके कारण 4 से 5 महीने व्यापर को बंद करना पड़ता था जिसे अंग्रेजो को काफी बहुत नुकसान होता था इसलिए इस समस्या से निजाद पाने के लिए Hawada Bridge की आवश्यकता महसूस की गई

Hawada Bridge की कल्पना व इस पर अध्ययन सबसे पहले 1862 में बंगाल के गवर्नर ने की थी, लेकीन यह कई प्रकार के शोध व निर्माण में होने वाले अत्यधिक बजट के चलते ढीले होता रहा… और आखिर में 1870 को कोलकाता ट्रस्ट की स्थापना करके 1871 में हावड़ा ब्रिज अधिनियम पारित कर इस ट्रस्ट को पुल के निर्माण और रखरखाव की जिम्मेदारी दी गई

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पुराना हावड़ा ब्रिज

Hawada Bridge 1870 में कलकता पोर्ट ट्रस्ट की स्थापना और 1871 में हावड़ा ब्रिज अधिनियम के तहत पुल के निर्माण और रखरखाव की जिमेदारी दी गई, कलकता और हावड़ा दोनों क्षेत्रो को जोड़ने वाला पहला पुल पोंटून ब्रिज था  जिसे सर ब्रैडफोर्ड लेसली के साथ 1874 में हस्ताक्षरित अनुबंध के बाद बनाया गया था

पुराने हावड़ा ब्रिज का निर्माण

पुराना Hawada Bridge का निर्माण ब्रैडफोर्ड लेसली द्वारा किया गया है कोलकाता और हावड़ा को जोड़ने वाले इस पहले फूल का निर्माण 3 साल में पूरा हुआ और आखिर में 17 oct 1874 में आम यातायात के लिए चालू किया गया यहाँ ख़ास बात जो ध्यान देने वाली है की यह एक पोंटून ब्रिज था

पोंटून ब्रिज को पीपा ब्रिज भी बोला जाता है क्योंकि यह ब्रिज लोहे के बने पीपों और लकड़ी की नावों के ऊपर मनाया जाता है इस ब्रिज का फायदा यह होता है कि नदी का जलस्तर ऊपर नीचे होता है तो यह उसके साथ ही ऊपर नीचे होता रहता है यह ब्रिज 1528 फिट लम्बा और 62 फिट चोडा था जिसके दोनों और 2.1 मीटर के पैदल यात्रियों के लिए फुटपाथ भी थे

Hawada Bridge

पुराने हावड़ा ब्रिज की ख़ासियत

इस ब्रिज की एक बात खास थी की इस को इस हिसाब से डिजाइन किया गया था की इसको बीच में से अलग किया जा सके, मतलब जरुरत पड़ने पर दो अलग अलग भागो में किया जा सके| इसकी एक वजह भी थी कि उस समय ज्यादातर व्यापार हुगली नदी के माध्यम से होता था चुकी यह ब्रिज नदी पर तैरता हुआ ब्रिज था इसलिए यह जहाजों का रास्ता रोक लेता, इसलिय इस समस्या से छुटकारा पाने के लिय जहाजों के आने पर इस ब्रिज को ही खोलकर दो भागों में बांट दिया जाता था और जहाजो को निकाल दिया जाता । प्रकाशवान होती आभानगरी – डीडवाना

ब्रिज खोलने के लिए हमेशा एक समय निर्धारित किया जाता और फिर अखबार के माध्यम से लोगों को इसकी सूचना दी जाती। उस निर्धारित समय पर ब्रिज को खोलकर सभी जहाजों को एक साथ निकाल दिया जाता और फिर ब्रिज को वापस एक करके आम लोगों के लिए चालू कर दिया जाता

1906 में ब्रिटिश सरकार ने इस हावड़ा ब्रिज की निगरानी के लिए एक कमेटी बनाई और उस कमेटी ने बताया कि हावड़ा ब्रिज पर बैल गाड़ियों का जाम लग रहा है और यह अपनी अधिकतम क्षमता को भी पार कर रहा है तो अब कोलकाता को एक और नए ब्रिज की जरूरत है

वर्तमान हावड़ा ब्रिज

उपरोक्त रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए, 1911 में हावड़ा में एक नया ब्रिज मतलब वर्तमान ब्रिज बनने की बात शुरू हुई लेकिन यह बात आगे नहीं बढ़ पाई क्योंकि इसी साल अंग्रेजों ने अपनी राजधानी को दिल्ली शिफ्ट कर लिया इसलिए पुल की मरम्मत की गई और इसे ही अगले कुछ वर्षों तक चालू रखा गया लेकिन अब यह ओर ज्यादा चलने वाला नहीं था

लिहाजा कुछ वर्षों बाद फिर से नया पुल बनाने की चर्चा सुरु हुई और बंगाल के प्रसिद्ध बिजनेसमैन राजेंद्र नाथ मुखर्जी की अध्यक्षता में सन 1921 में एक कमेटी का गठन किया गया, इस कमेटी ने न्यू हावड़ा ब्रिज कमीशन को अपनी रिपोर्ट सौंपी, रिपोर्ट के आधार पर 1926 में न्यू हावड़ा ब्रिज एक्ट पास किया गया और ब्रिज बनाने के लिए टेंडर निकाला, तो ब्रिज बनाने के लिए सबसे कम बोली एक जर्मन कंपनी ने लगाई तो पेज फिर से फस गया, क्योंकि उस समय जर्मनी और ब्रिटेन के रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे थे और इन्हीं रिश्तो की भेंट चढ़ गया यह न्यू Hawada Bridge

1935 में सरकार ने इस टेंडर को वापस कैंसिल कर दिया और एक दूसरा हावड़ा ब्रिज अमेंडमेंट एक्ट 1935 पारित किया और एक दूसरी कंपनी को इसका टेंडर दे दिया अब इस कंपनी ने 1936 में इस ब्रिज का निर्माण शुरू किया जो की 1942 को पूरा हुआ और 3 फरवरी 1943 को इसे आम लोगों के लिए खोल दिया गया

Hawada Bridge

हावड़ा ब्रिज का निर्माण कार्य 

Hawada Bridge का निर्माण कार्य 1936 में शुरू किया गया हालाँकि द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण इसके निर्माण प्रक्रिया को शुरुआत में ही रोक दिया गया था, जब इसका काम वापस सुरु किया गया तो इसके निर्माण के लिए 26000 टन स्टील की आवश्यकता थी. लेकिन इंग्लेंड 3000 टन से अधिक स्टील उपलब्ध नही करवा पाया तो इसके बाद टाटा स्टील ने बाकि कि आपूर्ती करने का जिमा लिया और पुल के लिए हाई टेंशन स्टील बनाया गया जिसको टिस्को के नाम से जाना जाता है

निर्माण के समय हावड़ा ब्रिज दुनिया का सबसे लंबा कैंटीलीवर ब्रिज था इस पुल की सबसे खास बात यह थी की यह पुल पूरी तरह रिवेंटिंग द्वारा बनाया गया जिसमे कोई भी नट बोल्ट का इस्तेमाल नही किया गया है यह कुल 26500 टन स्टील से बना हुआ है   

पूरी परियोजना को भारत के पुल निर्माण इतिहास में एक अग्रणी चमत्कार माना जाता है और उस समय इसकी लागत मगभग 25 मिलियन रूपये थी

Hawada Bridge के दोनों और मुख्य टावरों के केन्द्रों के बीच का विस्तार 460 मीटर है इसका निलंबित विस्तार भी 172 मीटर है  पैदल चलने वालो के लिए मुख सडक के किनारे  15 फीट चोडे फुटपाथ है

Hawada Bridge को 1942 में पूरा बना लिया गया था और इसे 3 फरवरी 1943 को आम जनता के लिए खोला गया जिसके उपर से गुजरने वाला पहला वाहन ‘ट्राम’ था उस समय ज्यादातर यातायात दोपहिया वाहनों, कारो, ट्रामो और ट्रको से किया जाता था

1946 की जनगणना से पता चला है की 27400 से अधिक वाहन, 121,100 पैदल यात्री और 2997 मवेशी प्रतिदिन हावड़ा ब्रिज को पार करते है  पिछले कुछ वर्षो में ये संख्या बढ़ी ही है 2007 की रिपोर्ट  में वाहनों की संख्या लगभग 90,000 हुई है

1993 में ट्राम को पुल पर चलने पर पूर्णतया रोक लगा दि गई और इसका मार्ग बंद कर दिया गया इसके पीछे कारण यह था की बढते यातायात और पैदल यात्रियों की संख्या को देखते हुए पुल ट्राम का भारी वजन उठा नही सकता

1965 में पुल का नाम आधिकारिक तोर पर बंगाली नोबेल पुरस्कार विजेता ‘रविन्द्र नाथ टैगोर’  के नाम पर ‘रविन्द्र सेतु’ कर दिया गया लेकिन आज भी यह हावड़ा ब्रिज के नाम से प्रसिद्ध है

Hawada Bridge की लोकप्रियता हावड़ा ब्रिज आज कोलकाता को गौरवशाली प्रतीक है

इसे कोलकाता का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है क्योंकि यह शहर को हावड़ा रेलवे जंक्सन से जोड़ता है पुल के दुसरे छोर पर मुलिक घाट फुल बाजार का रंगीन नजारा देखने को मिलता है

हावड़ा क्या है

हावड़ा पश्चिम बंगाल का एक ओधोगिक शहर है तथा पश्चिम बंगाल का दुसरा सबसे बड़ा का जिला है जो हुगली नदी के दाहिने तट पर स्थित है यह शहर अंग्रेजो के समय से ही काफी ज्यादा चर्चा में रहा है

हावड़ा ब्रिज क्या है

Hawada Bridge कोलकाता में हुगली नदी पर बना एक पुल जो कोलकाता को हावड़ा शहर से जोड़ता है जिसकी कुल लम्बाईलं 2150 फीट है यह पूरा ब्रिज महज जो पिलरो पर टिका है हुगली नदी के दोनों छोर पर दो लोहे के बड़े पिलर, उसी पर ये पूरा ब्रिज टिका हुआ है 1936 में इसे बनाना शुरू किया था और Hawada Bridge को आम लोगो के लिए 3 फ़रवरी 1943 को खोला गया था

हावड़ा ब्रिज कहा है

Hawada Bridge कोलकाता में हुगली नदी पर है जो की कोलकाता को हावड़ा जिले से जोड़ता है हुगली नदी उतर भारत की मुख्य नदी है जिसे गंगा के नाम से जाना जाता है लेकिन पश्चिम बंगाल में गंगा नदी को हुगली नाम से जाना जाता है

हावड़ा ब्रिज क्यों प्रसिद्ध है

Hawada Bridge एक ऐसा ब्रिज है जो बंगाल की खाड़ी में उठने वाले तूफानो को झेलते हुए प्रितिदिन एक लाख वाहनों और डेढ़ लाख से ज्यादा पेदल यात्रियों का भार वहन कर रहा है Hawada Bridge अपने निर्माण के समय तीसरा सबसे लंबा कंटीलीवर पुल था, हावड़ा ब्रीज आज दुनिया में अपनी तरह का छठा सबसे बड़ा पुल है यह इतना लंबा पुल बिना किसी पिलर और नट बोल्ट के अंग्रेजो के समय से आज तक हिला तक नही है यह ख़ासियत आज भी इसे खास बनाती है

हावड़ा ब्रिज किसने बनाया था

1926 में न्यू हावड़ा ब्रिज एक्ट पास किया गया और ब्रिज बनाने के लिए टेंडर निकाला, तो ब्रिज बनाने के लिए सबसे कम बोली एक जर्मन कंपनी ने लगाई तो पेज फिर से फस गया, क्योंकि उस समय जर्मनी और ब्रिटेन के रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे थे और इन्हीं रिश्तो की भेंट चढ़ गया यह न्यू Hawada Bridge

1935 में सरकार ने इस टेंडर को वापस कैंसिल कर दिया और एक दूसरा हावड़ा ब्रिज अमेंडमेंट एक्ट 1935 पारित किया और एक दूसरी कंपनी ब्रेथवेट एंड जेसप कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (बीबीजे) को इसका टेंडर दे दिया अब इस कंपनी ने 1936 में इस ब्रिज का निर्माण शुरू किया जो की 1942 को पूरा हुआ और 3 फरवरी 1943 को इसे आम लोगों के लिए खोल दिया गया

Hawada Bridge

हावड़ा ब्रिज की सच्चाई क्या है

निर्माण के समय हावड़ा ब्रिज दुनिया का सबसे लंबा कैंटीलीवर ब्रिज था इस पुल की सबसे खास बात यह थी की यह पुल पूरी तरह रिवेंटिंग द्वारा बनाया गया जिसमे कोई भी नट बोल्ट का इस्तेमाल नही किया गया है Hawada Bridge बंगाल की खाड़ी में उठने वाले तूफानो को झेलते हुए प्रितिदिन एक लाख वाहनों और डेढ़ लाख से ज्यादा पेदल यात्रियों का भार वहन कर रहा है

हावड़ा ब्रिज कब बनाया गया

1926 में न्यू Hawada Bridge एक्ट पास किया गया और ब्रिज बनाने के लिए टेंडर निकाला, तो ब्रिज बनाने के लिए सबसे कम बोली एक जर्मन कंपनी ने लगाई लेकिन उस समय जर्मनी और ब्रिटेन के रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे थे और इन्हीं रिश्तो की भेंट चढ़ गया यह न्यू Hawada Bridge

1935 में सरकार ने इस टेंडर को वापस कैंसिल कर दिया और एक दूसरा Hawada Bridge amendment act 1935 पारित किया और एक दूसरी कंपनी ब्रेथवेट एंड जेसप कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (बीबीजे) को इसका टेंडर दे दिया अब इस कंपनी ने 1936 में इस ब्रिज का निर्माण शुरू किया जो की 1942 को पूरा हुआ और 3 फरवरी 1943 को इसे आम लोगों के लिए खोल दिया गया

कोलकाता का हावड़ा

हावड़ा ब्रिज’ कोलकाता से हावड़ा को जोड़ने वाला ब्रिज जो आज पश्चिमी बंगाल में का पर्यटन आकर्षण का मुख्य प्रतीक बन गया है इस पूरी परियोजना को भारत में पुल निर्माण के इतिहास में एक अग्रणी चमत्कार माना जाता है 

हावड़ा ब्रिज कोनसी नदी पर बना है

उतर भारत की सबसे मुख्य नदी गंगा जो की बिहार से होती हुई पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है तो इसको यहाँ पर गंगा की जगह हुगली के नाम से जाना जाता है जो की भारत की सबसे बड़ी नदी है जिसकी कुल लम्बाई 2,510 KM है इसी हुगली नदी पर कोलकाता में बना हुआ है Hawada Bridge

कोलकाता हावड़ा ब्रिज की लम्बाई

न्यू Hawada Bridge मतलब वर्तमान ब्रिज की खास बात यह है की 1500 फीट लंबा और 76 फिट चौड़ा है जिसके दोनों और पैदल यात्रियों के लिए फुटपात भी बनाया गया है

इस ब्रिज को बनाने के लिए 26000 टन स्टील की जरूरत थी लेकिन 1939 में सेकंड वर्ल्ड वॉर शुरू हुआ तो ब्रिटेन से स्टील का आयात बंद हो गया इसलिए 23000 टन स्टील टाटा स्टील द्वारा दी गई थी

हावड़ा ब्रिज कैसे खुलता है

दुनिया भर में कई ऐसे ब्रिज है जहा कोई बड़ा जहाज आता है तो उसे खोल कर उस जहाज या नाव को निकाला जाता है. ठीक यही बात Hawada Bridge के बारे में कहा जाता है लेकिन ना तो आज तक इसे खोला गया और ना ही ब्रिटिस सरकार ने इसका खुलने का जिक्र किया है

हालाँकि यह बात जरुर सत्य है की वर्तमान Hawada Bridge की जगह 1943 से पहले एक पोंटून / ( पीपों का बना नदी पर तैरता हुआ ब्रिज ) ब्रिज था और उस ब्रिज को बिच में से खोलकर अलग किया जा सकता था, ऐसा करने के पीछे एक वजह भी थी क्या – की समय ज्यादातर व्यापार हुगली नदी से ही होता था इसलिए नावों को इस ब्रिज निकालने के लिए इसको खोलकर अलग किया जाता था

हावड़ा ब्रिज कब टूटेगा

2011 में हावड़ा ब्रिज का सर्वे किया गया जिसमे एक रिपोर्ट निकलकर सामने आयी की लोगो के द्वारा पान, तम्बाकू थूकने की वजह से इसके खम्भों में जंग लग गया था और इसकी मोटाई कम हो गई है वही पक्षियों के द्वारा गंदगी करने से इसके खम्भों में जंग आ गया था जिसकी वजह से ब्रिज कमजोर हो रहा है लेकिन सरकार ने इसकी सुध ली और लाखों रूपये खर्च करके स्टील के खम्भों के नीचे फाइबर ग्लास ढक दिया, जिससे इनकी मजबूती और बढ़ गई है

हावड़ा ब्रिज रात में क्यों बंद हो जाता है

हावड़ा ब्रिज को रात को इसलिए बंद किया जाता है क्योंकि रात के समय तापमान तेजी से घटता है जिसकी वजह से पानी के अंदर बर्फ जमने के कारण पानी का स्थर बढ़ जाता है

दूसरा कारण यह भी है की कुछ मान्यताओं के अनुसार Hawada Bridge के बनाने वाले इंजीनियर्स ने ये भविष्य वाणी की थी की यह पुल जब भी गिरेगा तो वो समय 12 बजे का होगा लेकिन उन लोगो ने यह नहीं बताया था की वह समय दिन का होगा या रात को इस लिए इसी रात की 12 बजे एक बार बंद कर दिया जाता है

एक कारण तापमान और अँधेरे को भी माना जाता है रात के समय तापमान में कमी होने के कारण कोई बड़े ग्लेसियर न पिघलने के कारण ब्रिज से टकरा सकता है इसलिए रात को ब्रिज को बंद किया जाता है

हावड़ा ब्रिज की चाबी किसके पास है

वैसे तो Hawada Bridge के बारे में कई प्रकार के रहस्य बताये गये है लेकिन उन रहस्यों मे से एक यह भी है की इस हावड़ा ब्रिज की एक चाबी है जो ब्रिटिश सरकार ने भारत को नही दी थी इस चाबी से इस ब्रिज को दो भागो में खोला जा सकता है लेकिन ये बाते सिर्फ लोककथाओं में ही है इसकी कोई सचाई नहीं है की Hawada Bridge की चाबी जैसा कुछ था

हालाँकि यह बात जरुर सत्य है की वर्तमान Hawada Bridge ब्रिज की जगह 1943 से पहले एक पोंटून ब्रिज था और उस ब्रिज को बिच में से खोलकर अलग किया जा सकता था, ऐसा करने के पीछे एक वजह भी थी क्या – की समय ज्यादातर व्यापार हुगली नदी से ही होता था इसलिए नावों को इस ब्रिज निकालने के लिए इसको खोलकर अलग किया जाता था

हावड़ा ब्रिज रात 12 बजे क्यों बंद हो जाता है

बताया जाता है की जब हावड़ा ब्रिज बनाया जा रहा था तो उस समय किसी संत ने भविष्यवाणी की थी की ये ब्रिज ठीक 12 बजे गिरेगा लेकिन उन्होंने ये नही बतया था की दिन के 12 बजे गिरेगा या रात के 12 बजे इसलिए इस ब्रिज को 1 दिन में 2 बार बंद किया जाता है दिन के 12 बजे और रात के 12 बजे, Hawada Bridge इस समय 5 मिनट के लिए बन्द किया जाता है

Hawada Bridge FAQ

Hawada Bridge kyo Famous hai

हावड़ा ब्रिज एक अद्भुत इंजीनियरिंग उपलब्धि जो भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, यह एक खूबसूरत पुल और एक लोकप्रिय पर्यटन भी स्थल है. साथ ही यह मात्येर नहीं के किनारे बने दो विशाल स्तंभों पर टिका हुआ, इनके अवाला नहीं में किसी तरह का कोई पिलर नहीं बनाया गया है तो इसको बनाने में नट बोल्ट का इस्तेमाल भी नहीं किया गया है ये सभी कारण हैं जो हावड़ा ब्रिज प्रसिद्ध बनाते है.

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