The Vulture and the Little Girl / द वल्चर एंड द लिटिल गर्ल कहते है एक तस्वीर हजारों शब्दों के बराबर होती है, और सच भी है की अगर तस्वीर… तस्वीर हो तो असंभव को संभव कर देती है, तस्वीर… तस्वीर हो तो दुनिया बदल देती है करेंगे बात एक एसी तस्वीर की जिसने ना केवल दुनिया भर को सोचने के लिए मजबूर किया बलकी वो तस्वीर आज भी देखने वाले के मन में दया और करुणा का भाव जाग्रत कर देती है, तो आइए जानते है एक एसी ही सची तस्वीर के पीछे का अनसुना सच…
The Vulture and the Little Girl
क्या थी तस्वीर– एक छोटी बच्ची जमीन पर बैठी है भूख से बेबस, खाना दूर है, वहा तक चलकर जाना है पर शरीर में इतनी भी ताकत नहीं है की वो खिसकर वहा तक पहुच जाए… आखिर वो घुटने टेक कर बैठ जाती है अपना सिर जमीन पर टिका देती है उसी समय उसके पीछे आकर बैठ जाता है एक गिद्ध, सायद इस उम्मीद में की कब ये बच्ची मरे और में मेरी भूख मिटा लू… क्या भयानक मंजर रहा होगा और ये कुदरत का करिश्मा ही समझो की ये लम्हा कैमरे में केद हो जाता है
आइये पहले तस्वीर देखते है …
कैसे खिची गई यह तस्वीर, क्या थी इसके पीछे की कहानी और उस बच्ची और फोटोग्राफर का क्या हुआ… सब सवालों को गहराई से समझते है
बात है 1993 की, उत्तरी अफ्रीका का एक देश सूडान गृह युद्ध में सुलग रहा था, बेरोजगारी चरम पर थी, उधोगधंधे सब बंद पड़े थे, लोग दाने दाने को मोताज थे, अगर कुछ बचा था तो उसकी भी रही कही कसर पूरी कर दि अकाल ने… गृहयुद्ध और अकाल का एक साथ होना सूडान पर इतना भारी पड़ा की लोग राहत शिवरों के सामने लाइने लगाकर खड़े होने लगे…
लोगों की आखे आसमान की ओर टकटकी लगाए रहती थी की कब UN का प्लेन आए और पेट भरने को कुछ मिल जाए. मार्च महीने की बात है जब UN के प्लेन में एक पत्रकारों का समूह भी आया, यह पत्रकारों का ऐसा ग्रुप था जो दुनिया भर से युद्ध या आपदा जैसी परिस्थितियों में काम करता था
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इन्ही पत्रकारों के समूह में एक सदस्य था केविन कार्टर, यह पत्रकार दक्षिणी अफ्रीका का रहने वाला था जो अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने व दर्दनाक द्रश्यो को केद करने के लिए जाना जाता था, (मतलब केविन पहले भी एसी फोटोग्राफी कर चुके थे) केविन जब सूडान पहुंचे और वहा का जो मंजर देखा, वो अकल्पनिए था… केविन ने वास्तविक हालातों को ओर करीबी से जानने और इस स्थिति को दुनियाभर तक पहुचाने के लिए सूडान के ग्रामीण इलाको तक जाने का मन बनाया
ग्रामीण इलाको तक जाने के लिए केविन को सुरक्षा गार्ड्स की जरूरत थी जो उन्हें कुछ शर्तो के बाद मिल गई, अब केविन अगले कुछ दिनों तक ग़ाव गांव जाकर सूडान के भयानक हालात अपने कैमरे में केद करते रहे,
ऐसे ही एक दिन केविन एक गाव में कुछ छोटे बच्चो की फोटो क्लिक कर रहे थे, जब अपने कैमरे को दूसरी तरफ घुमाया तो देखा की भूख से तड़प रही एक बच्ची, जिसके शरीर में सिर्फ हड्डिया बची है वो अपना शिर जमनी पर टेक कर बैठी हुई है सरीर इतना दुपला पतला हो चू का है की एक एक हड्डि दिखाई दे रही है… केविन ने देखा की उस लड़की के पास ही एक गिद्ध आकर बैठ गया है सायद इस उम्मीद में की कब ये छोटी बच्ची अपनी स्वास छोड़े और में अपना निवाला बना लू
केविन काफी समय तक इस द्रश्य को देखता रहा और फिर कैमरे में केद करके वापस चला गया, ऐसा करना जरुरी भी था क्योंकि एक और तो केविन का प्लेन छुटने वाला था, वही वहा की स्थानिए पुलिस की हिदायत भी थी की वो वहा किसी प्रकार का हस्तक्षेप ना करे
अब केविन वापस अपने घर पहुच चुके थे पर वो द्रश्य अब भी उनकी नजरों से दूर नहीं हो रहा था कुछ समय बात न्यू यॉर्क टाइम्स ने इस तस्वीर को अपने अख़बार में छाप दिया टाइटल दिया ”भूख से कमजोर एक छोटी बच्ची खाने की तलास में जा रही है पास ही एक गिद्ध इंतजार कर रहा है”
केविन की खिची इस तस्वीर ने दुनिया भर में तहलका मचा दिया, लोगो पर इस फोटो का इतना असर हुआ की, दुनिया भर में सूडान के लिए चंदा इक्कठा होने लगा, UN ने भी राहत सामग्री और सहायता में और ज्यादा तत्परता दिखाई और यह फोटो सूडान के लिए संकट मोचक बन गई
पर … पर क्या हुआ इस फोटो से ना तो केविन ख़ुश थे और ना ही दुनियादारी, वजह केविन उस भयावकता के मंजर को नहीं भूल पा रहा था तो लोग यह जानना चाहते थे की आखिर उस लड़की का क्या हुआ
लड़की का क्या हुआ
साल 2011 तक दुनिया उस बच्ची के हालात से अनजान थी ”(क्योकिं सोशल मीडिया तो था नहीं की पल पल की खबर मिल जाए)” फिर 2011 में कुछ स्पेन के पत्रकार यह जानने सूडान गए की आखिर उस बच्ची का क्या हुआ… हालाँकि वहा उन्हें वो बच्ची नहीं मिली पर उनकी मुलाकात उसके पिता से हुई…
पिता के बताए अनुसार… वो लड़की, लड़की नहीं बलकी लड़का था वो फोटो क्लिक होने के बाद गिद्ध वहा से उड़ गया था और वो बच्चा भी फ़ूड कैम्प तक पहुच गया हालाँकि बच्चे को उस समय तो बचा लिया गया पर साल 2007 में उसे अनजान बिमारी के चलते तेज भुखार आया और उसकी मोत हो गई
पत्रकार का क्या हुआ
इस तस्वीर को देखने वाले लोग केविन से नाराज थे… की केविन ने फोटो क्लिक करने में समय बर्बाद किया, वो चाहते तो इस लड़की को राहत शिवर तक पंहुचा सकते थे
साथ ही केविन खुद भी अवसाद के शिकार हो गए थे, हर वक्त उनकी नजरों के सामने वही तस्वीर आने लगी थी हालाँकि इस तस्वीर ने केविन को उत्कर्ष्ठ सार्वजनिक सेवा के लिए दिया जाने वाल विश्व विख्यात पुलित्जर पुरस्कार तो दिला दिया था पर आत्मिक शांति नहीं मिल पाई और कुछ ही महीनों बाद उन्होंने आत्महत्या कर ली
केविन ने बच्ची की हेल्प क्यों नहीं की
लेकिन एक सवाल ओर रह गया केविन ने उस बची को राहत कैम्प तक क्यों नहीं पहुचाया… इसके लिए, केविन को दुनिया भर से उलहना मिला, कई महीनों तक आलोचकों का सामना करना पड़ा, इतना ही नहीं कुछ लोगों ने तो केविन को वहा मोजूद दुसरे गिद्ध तक की संज्ञा दे दि
पर क्या थी सचाई … सोचने, समझने और धरातल पर काम करने में फर्क होता है, समझना ये भी था की केविन की क्या परिस्थति रही, वैसे केविन वहा एक बच्ची की नहीं बलकी पुरे सूडान के हालात जानने और उन हालातों से दुनिया को रूबरू करा के वहा के लोगों की हेल्प करवाना चाहते थे और वो इस काम में सफल भी रहे
साथ ही पत्रकारों को UN से साफ निर्देश थे की वो वहा के लोगो या किसी वस्तु को ना छुए, क्यों की वहा उस समय संक्रमण बीमारिया फ़ैल रही थी इसके अलावा केविन के साथ हमेशा वहा के गार्ड रहते थे… और स्थानिए पुलिस द्वारा किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप ना करने के लिए बाध्य किया गया था
केविन के हाथ बंधे थे, वो चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते थे… इसलिए उन्होंने वही किया जो जरुरी था … वहा के हालातों को दुनिया तक पहुचाना …. ओर वो सफल भी रहे
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