“वही हकदार हैं किनारों के
जो बदल दें बहाव धारों के।”
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सीकर जिले के धोद विधानसभा क्षेत्र के ग्राम पंचायत मूंडवाड़ा के अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखते एक मजदूर किसान पृष्ठभूमि से आते एक शख्स की जीवनी को देखते है तो पाते हैं कि इस जीवन में कुछ भी असंभव नहीं है

जी हा, बस जरूरत है तो मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं को समर्पित जीवन शैली की… साधारण रहकर ही कुछ असाधारण सोचने की… जनता के बीच रहकर अपने जैसी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उन कष्टों को दूर करने के लिए पहल करने की… जिन अभावों को स्वयं ने और अपने परिवेश के लोगों ने भोगा है प्राथमिकता के तौर पर सबसे पहले उन्हीं की ओर कार्य करने की

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बीपीएल परिवार से निकले विधायक की बात करते है तो —- कोई पचास एक किलो वजन का दुबला पतला सा शख्स जिसे देखकर तो कोई अंदाजा ही नहीं लगा पाए कि यह शख्स विधायक रहा हो और वर्तमान में विधायक की दौड़ में सबसे आगे चल रहा है…

एक शख्स जो साढे पांच फुट की मध्यम सी ऊंचाई लिए छरहरा बदन लिए हो… लेकिन जब बोलने लगे तो गांव की चौपाल से लेकर विधानसभा के सदन में खूब बोलता है, बोली में वज़न — तर्क और आंकड़ों का होता है तो बोली में ताकत — किसान मजदूर हितों को थामती विचारधारा से मिलता है… वर्षों पहले से किसान मजदूर क़ौम के स्वाभिमान को अपने भीतर थामे हुए यह शख्स जब बोलता है
तो लोग कहते हैं कि धोद बोल रहा है
लोग कहते हैं लोकतंत्र बोल रहा है
लोग कहते हैं किसान क़ौम बोल रही है

यानी जब यह शख्स बोलता है तो क्या खूब बोलता है… आखिर कौन है यह खुद्दार शख्स… यह शख्स है पेमाराम… जी हां धोद विधानसभा से माकपा प्रत्याशी श्री पेमाराम

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आजादी के एक दशक बाद ही 1957 में सीकर जिले से कोई पच्चीस एक किलोमीटर दूर मूंडवाड़ा गांव में किसान परिवार में श्री चिरंजीलाल के घर आपका जन्म हुआ, आपके चार भाई है … पारिवारिक पृष्ठभूमि खेती किसानी और मजदूरी से जुड़ी थी. आपके आजीविका का साधन खेती किसानी ही था जहां पांच भाइयों की 23 बीघा ज़मीन पर बने एक ट्यूबवेल बना था लिहाज़ा अपने हिस्से की कोई 4 बीघा जमीन पर खेती किसानी होती थी जिससे मुश्किल से गुजारा चल रहा था लिहाज़ा आप रंगाई पुताई से लेकर हाथ के छोटे-मोटे काम करके पढ़ाई-लिखाई का ख़र्च चलाया करते थे, शादी के बाद कृषि के साथ पशुपालन भी करने लगे थे…!!

आपने किसान कार्ड और सहकारी समिति द्वारा दिए जाने वाले सोसाइटी ऋण से अपनी खेती किसानी को दुरूस्त किया तो … इंदिरा आवास योजना के तहत मिले ऋण से पक्का घर बनाया यानी आपको उस हकीकत का पता है जो एक गरीब परिवार का व्यक्ति हर रोज़ देखता और भोगता है, कुछ लोग गरीब दिखाई देने का ढोंग करते हैं लेकिन आप वो शख्स है जिन्होंने गरीबी को करीबी से देखा और जिया है।

आपकी शिक्षा की बात करें तो पाते हैं कि आपकी प्राथमिक शिक्षा गांव मूंडवाड़ा के ही स्कूल से प्राप्त की वहीं माध्यमिक शिक्षा सीकर के श्री कल्याण स्कूल से प्राप्त की वहां से बाद में उच्च शिक्षा राजस्थान के सबसे बड़े कॉलेज श्री कल्याण कॉलेज सीकर से प्राप्त की…आप अस्सी के दशक में यहां से राजनीति विज्ञान सहित तीन विषयों से स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की… यानी आप एक उच्च स्कॉलर रहे हैं,

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आप किसान मजदूर वर्ग के हितों को साधती विचारधारा लिए छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया यानी SFI से जुड़े और लगातार छात्रवृत्ति से लेकर एडमिशन से जुड़े विभिन्न मुद्दों को उठाया। यहां हॉस्टल मे रहते समय कॉमरेड त्रिलोक सिंह और कॉमरेड किशन सिंह ढाका का विशेष सानिध्य पाया … यहां से ही शोषण विहीन समाज की स्थापना के लिए विचारधारा को अपने जीवन का आभूषण बनाया।

आपके जीवन में मूंडवाड़ा के स्वतंत्रता सेनानी श्री लादूराम जोशी का असर और प्रभाव बहुत रहा लिहाज़ा आप समाज के हर वर्ग से जुड़ते चले गए

आपको आप ही के गांव के कॉमरेड अमराराम का विशेष सानिध्य मिला, अमराराम के साथ आपने बेहतरीन जुगलबंदी रखी… चुनावी कुरुक्षेत्र से लेकर हर समय उन्हीं के साथ रहे अमराराम के धोद विधानसभा से वर्ष 1993 से अगले पंद्रह वर्षों तक जनप्रतिनिधित्व को करीब से देखा और वही से राजनीतिक कौशल को प्रत्यक्षतः अपने जीवन में उतारा।

कुर्ता पायजामा पहने गले में गमछा डाले यह शख्स बिना किसी मध्यस्थ के सीधा मिलता है यही धोद विधानसभा क्षेत्र के लोगों के जनप्रतिनिधित्व की खूबसूरती है वैसे चुनावों के समय ही नेता सीधे मिल पाते हैं बाकी समय मध्यस्थ के जरिए ही मिल सकते हैं लेकिन यहां किसी मध्यस्थ की आवश्यकता कभी ना रही है और ना रहेगी, लोगों जनप्रतिनिधित्व का यह रूप बेहद पसंद आया।

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आपने विगत 30-35 सालों में शेखावाटी क्षेत्र में हुए 9 सफल किसान आंदोलनों में भागीदारी सुनिश्चित की, मुद्दा चाहे बिजली पानी का हो या फिर कर्ज माफी का हो हर मोर्चे पर आपने शोषणकारी व्यवस्था की मुखालिफत की और किसान क़ौम के हितों की रक्षार्थ आगे बढ़कर आए।

आप वर्ष 2008 से 2013 तक धोद विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे आपने खेती किसानी के मुद्दों के साथ जन सामान्य के विभिन्न मुद्दों पर सड़क से सदन तक आवाज उठाई आप इस कार्यकाल में सदन में 650 से अधिक प्रश्न उठाए लिहाज़ा आप सबसे सक्रिय विधायको की सूची में शामिल हुए जो निश्चित रूप से एक विधायक की सक्रियता और सजगता का बड़ा पैमाना नजर आता है।

अखिल भारतीय किसान यूनियन के तत्वावधान में वर्ष 2017 के सितम्बर माह में 13 दिन तक दर्जन भर जिला मुख्यालयो पर धरना प्रदर्शन और सभाएं हुईं तीन दिन चक्का जाम रखा गया… सैंकड़ों लोगों को जेल भेजा गया लेकिन जब 11 सदस्यों की प्रतिनिधि मंडल से सरकार की मुलाकात हुई तो 11 सूत्री मांगों को रखा गया जिसमें से बहुत सी मांगै मानी गई, पचास हजार की ऋण माफी का समझौता हुआ था लेकिन सरकार ने कॉपरेटिव बैंक के 50 हजार ही माफ किए लेकिन इससे करीब 29 लाख किसानों को कर्ज माफी का लाभ मिला।

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11 सूत्री मांगों में बिजली बिल माफ, स्वामीनाथन आयोग के अनुसार डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद, किसानों को निश्चित पेंशन, रोजगार गारंटी को लेकर मांग, गौवंश संरक्षण विशेष रूप से आवारा पशुओं से निजात दिलाने व बछड़ा बिक्री को लेकर मांग, दलितों पर हो रहे अत्याचारों पर रोक,प्याज मूंगफली को समर्थन मूल्य पर खरीद आदि मांगे रखी गई जिनमें से आधी से ज्यादा मांगे मौजूदा सरकार ने मानी और धीरे-धीरे लागू भी की…जो एक सफल आंदोलन को रेखांकित करता है।

केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा पूंजीपतियों के हितों को ध्यान में रखकर जो किसान विरोधी कानूनो को लागू किया था जिसके लिए एक साल भर किसानों को सड़कों पर आंदोलन में ठिठुरन भरी सर्दी और बरसात में तंबूओं के नीचे रातें बिताने के लिए मजबूर कर दिया था… किसानों की आय दोगुनी करने वाली यह किसान भक्षी सरकार 750 किसानो की बलि लेकर किसान परिवारो के लोगों आ जीवन लील गई…

लोकतांत्रिक व्यवस्था से चलने वाले देश ने तानाशाही का वो रूप देखा जिसमें किसानों को राष्ट्र विरोधी और गद्दार तक कह दिया था… कंटीली तारों और बेरिकेडिंग से रोका गया… वाटर कैनन से ठंड में पानी की बौछारों से भी रोका गया था…सड़क पर कीलों वाली फसलों को भी बोया ताकि किसान दिल्ली न पहुंच पाए….हद ही हो गई थी… सभी काले‌ कानून रद्द भी हुए

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अब आप ही बताइए किस मुंह यह भाजपा की सरकार किसानों से वोट ले पाएगी… क्या 21वी सदी का किसान इतना भी नहीं सोचता क्या जो दिल्ली में बैठे लोग सोचते हैं…!!

किसानों शायद इसका पहला जवाब 25 नवंबर को दे देंगे… वोट की चोट उनके डंडों की चोट से भारी होती है… किसान क़ौम अब पढ़ने भी लगी है उसे शासन प्रशासन की समझ है वह जवाब देना भी सीख गई है सड़क से सदन तक आवाज उठाते उनके हकों की बात करते लोग ही सदन तक पहुंचेंगे बाकी मिथ्या राष्ट्रवाद की चादर ओढ़ सो सकते हैं।

वैसे यहां यह बात करना जरूरी है कि कांग्रेस बीजेपी का झंडा पकड़ने वालो को भी खेती किसानी के मुद्दों के लिए अखिल भारतीय किसान यूनियन और कम्युनिस्ट पार्टी के बैनर तले आना पड़ता है जो इन किसान क़ौम को समर्पित किसानों के अग्रदूतों की मनोवैज्ञानिक प्रभाव और सफलता को रेखांकित करता है।

वर्तमान में खेती से पहले बीज ट्रेक्टर, खाद बिजली आदि के प्रबंधन के लिए किसान को कृषि आदान के लिए ऋण यानी उधार पर निर्भरता रखनी पड़ती है ऐसे में मजबूत किसान संगठन होना ज़रूरी है।

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भाजपा की सरकार द्वारा नोटबंदी और जीएसटी के चलते बाजार की अस्थिरता और अनिश्चितता ने किसानों को दृश्य अदृश्य नुकसान पहुंचाया है जिसके चलते 2017 में केंद्र की सरकार द्वारा 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा जुमला साबित हुआ… किसानों को बेबस और लाचार बना दिया

2015 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू की गई लेकिन यह बीमा योजना धरातल पर लागू नहीं हो पाई… भादरा के माकपा विधायक बलवान पूनिया के विधानसभा क्षेत्र में मजबूत जनप्रतिनिधित्व के चलते फायदा हुआ, शेखावाटी क्षेत्र में आशातीत सफलता नहीं मिल पाना शायद यहां के जनप्रतिनिधित्व की कमी नजर आती है… फसल की खराबी पर मिलने वाले लाखों के मुआवजे से जनता की समझ और कम्पनियों व सरकार की बेरुखी किसानों को उस मलहम से दूरी को रेखांकित करता है जिसकी उन्हें बेहद ज़रूरत भी है ऐसे में धोद विधानसभा क्षेत्र में पेमाराम की जीत की जरूरत ज्यादा हो जाती है कि शासन प्रशासन पर मजबूत पकड़ बनाकर किसानों को फसल बीमा का लाभ दिलाया जा सके।

सीकर जिले में प्याज का उत्पादन बहुलता में होता लेकिन लागत 5-6 रूपए प्रति किलो होने और भाव भी लगातार 4-5 से 8-10 तक रहने के चलते यह फसल लाभकारी नहीं रह गया है उसमें केंद्र की भाजपा सरकार की ग़लत नीतियों का परिणाम है

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कॉमरेड पेमाराम का जन्म सीकर जिले के गांव मुण्डवाड़ा में हुआ। प्राथमिक शिक्षा गांव में पूरी करने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए सीकर शहर चले गये। वहां से उन्होंने बी.ए., एम.ए. की शिक्षा प्राप्त की और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गये। सीकर जिले का धोद विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने पर अमराराम दांतारामगढ़ चले गए और पेमाराम भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के धोद विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बन गए। वर्ष 2008 में वे विधायक चुने गये। वे किसान आंदोलनों में सीकर जिले के अग्रणी नेताओं में से एक रहे हैं।

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